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________________ (६८) का भागी हुआ, और उसके उद्धार के लिये देवताओं ने बहुतही प्रयत्न किया; तो फिर आजकल के मांसलोलुए जन बिचारे भद्रिक स्वर्ग के अभिलाषी प्राणियों के धन का नाश कराकर पर्वोक्त वाक्यानुसार यजमान को नरकगामी बनाकर स्वयं (यज्ञ करानेवाले) भी नरक में गिरते हैं। अत एव ऋषियों ने अजशब्द का अर्थ पुगना धान ही किया है । और इसमें प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शाब्दादि कोई भी प्रमाण का विरोध नहीं है । इस अहिंसा शास्त्र को प्रमाण (संमान) करनेवाले मुनियों का यह अर्थ है । और तीन प्रकारका अर्थवाद वृद्ध पुरुषों ने जो माना हैउसमें मुनियों का मत केवल भूतार्थवादरूप अर्थवाद है किन्तु गुणवाद, अनुवादरूप नहीं है। क्योंकि गुणवाद विरोध में होता है, जैसे सन्ध्याकरनेवाला कोई पुरुष पत्थर पर बैठा है उस पत्थर को कोई पुरुष यदि “ सन्ध्यावान् प्रस्तरः ” ऐसा कहे, तो सन्ध्यावान् और प्रस्तर का अभेद प्रत्यक्ष बाधित है, तथापि गुणस्तुतिरूप वाक्य होने से यह गुणवादरूप अर्थवाद माना जा सकता है । किन्तु मुनियों के मत में कोई विरोध नहीं है अत एव वह गुणवाद नहीं है । और निश्चितार्थ में ही अनुवादरूप अर्थवाद होता है । जैसे " अग्निहिमस्य भेषजम् ' अर्थात् अग्नि हिम का औषधि है, यह बात आबालगोपाल प्रसिद्ध होने पर भी उसीका जो कथन किया गया वह अनुवादरूप अर्थवाद है । प्रस्तुत में मुनियों ने जो अज शब्द का धान्य अर्थ किया है वह प्रायः समस्त प्राणियों में प्रसिद्ध न होने से अनुवादरूप अर्थवाद नहीं हो सकता। और जहाँ पर
SR No.002390
Book TitleAhimsa Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1923
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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