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________________ ( ६७ ) ऐसा विचार कर एकत्रित हुए देवता और ऋषि लोग राजा वसु के पास आकर कहने लगे कि हे राजन् ! किस पदार्थ से यज्ञक्रिया करनी चाहिए ?, अज से या अन्न से ?, हम लोग आपको इस विषय में प्रमाण मानते हैं, अतएव आप हमलोगों के संशय का निवारण कीजिए । तदनन्तर उन सत्पुरुषों को हाथ जोड़ कर राजा वसु बोला कि हे ऋषिवर ! आप लोग सत्य कहिये कि किस को कौन मत अभीष्ट है। ऋषियोने कहा कि धान्यों से ही यज्ञ करनेका तो हमलोंगों का पक्ष है, और देवताओं का पक्ष पशुकी हिंसा करके यज्ञ करनेका है । अत एव हे राजन् ! आप हमलोगों के इस संशय को हटाइए । तदनन्तर देवताओं के मत को जानकर वसु ने देवताओं के पक्ष का ही आश्रयण किया अर्थात् 'अज' शब्द का छाग ही अर्थ है यह बात पक्षपात के आवेश में होकर कह दिया, अर्थात् अज शब्द का अर्थ बकरा ही करके यज्ञ करना चाहिये । ऐसा जब उसने कहा, तब तो सूर्य के समान तेजस्वी मुनिलोग क्रुद्ध हुए और विमानस्थ देवपक्षपाती राजा वसु को शाप दिया कि जो तुमने पक्षपात से देवताओंका ही पक्ष ग्रहण किया है इसलिये आकाश से तुम्हारा पृथ्वीपर पात हो, अर्थात् तुम नरक को प्राप्त हो । उसके बाद ऋषियों के वाक्य के प्रभाव से राजा बसु नीचे गिरकर नरक में गया । इन पूर्वोक्त श्लोकों से सिद्ध होता है कि यज्ञ में भी हिंसा करने का विशेष निषेध है । राजा वसुके समान सत्यवादी नराधिप ने भी दाक्षिण्य के आधीन होकर ज़ो अर्थ का अनर्थ कर डाला, इसलिये वह स्वयं अनर्थ
SR No.002390
Book TitleAhimsa Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1923
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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