________________
(६६) १६ असं विमानस्थं देवपक्षार्थादिनम् ।
सुरपक्षो गृहालस्ते यस्मात्तस्माद् दिवः पन" ॥ १५ ॥
भावार्थ-युधिष्ठिरने भीष्म पितामह से प्रश्न किया कि-भगवान् का अत्यन्त भक्त राजा वसु परिभ्रष्ट होकर भूमितल को क्यों प्राप्त हुआ? इसके ऊत्तर में भीष्मपितामह ने कहा कि-विवादकथावाला पुराना इतिहास यहां तुमसे मैं कहता हूँ-कि हे भारत ! ऋषि लोगों का और देवताओं का विवाद इस तरह हुआ कि देवता उत्तम ब्राह्मणों से कहने लगे कि 'अज' से ही यज्ञ करना और 'अज' का अर्थ बकरा ही करना, दूसरे पशु को ग्रहण नहीं करना। किन्तु ऋषियों ने अपना पक्ष प्रकट किया कि यज्ञ में बीजादि से होम करना, क्योंकि यह वैदिकी श्रुति, 'अज' से बीजही का ग्रहण करती है, इसलिये बकरे का मारना अच्छा नहीं है। हे देवताओ : यज्ञ में बकरे की हिंसा करना सत्पुरुषों का धर्म नहीं है, क्योंकि सब युगों से श्रेष्ठ यह सत्ययुग है, इस में पशु को कैसे मारना उचित है ?, इस तरह देवताओंके साथ जब विवाद चल रहा था उसी समय आकाश में चलनेवाला लक्ष्मीवान् समस्त सैन्य वाहनयुक्त श्रेष्ठ राजा वसु उस देश को प्राप्त हुआ, जहां देवता और ऋषि लोग विवाद कर रहे थे । सत्य के प्रभाव से आकाश में रहनेवाले राजा वसु को देखकर ऋषियोंने देवताओं से कहा-कि राजा वसु यज्ञविधि को करानेवाला दानेश्वर सब प्राणियों को हितकर हमलोगों के संशय का छेदन करेगा, क्योंकि यह राजा वसु कभी अन्यथा वाक्य नहीं बोलेगा।