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(६२) भावार्थ-अश्वमेध, गोमेध, संन्यासी होना, श्राद्धसंबन्धिमांसभोजन, और देवर से पुत्र की उत्पत्ति, ये पांचों बातें कलियुग में वर्जित हैं । इसी तरह नारदीय पुराण में कहा है कि कलियुग में देवरसे पुत्र की उत्पत्ति, मधुपर्कमें पशुका वध, श्राद्ध में मांस का दान और वानप्रस्थाश्रम नहीं करना चाहिये ।।
और बृहत्पराशरसंहिता के ५ वें अध्याय में इस तरह मांस का निषेध लिखा है कि“यस्तु प्राणिवधं कृत्वा मांसेन तर्पयेत् पितॄन् । सोऽविद्वान् चन्दनं दग्ध्वा कुर्यादगारविक्रयम् ॥ १॥ क्षिप्त्वा कूपे तथा किश्चित् बाल आदातुमिच्छति । पतत्यज्ञानतः सोऽपि मांसेन श्राडकृत् तथा " ॥२॥
भावार्थ-जो पुरुष प्राणीका वध करके मांससे पितरोंकी तृप्ति करना चाहता है वह मूर्ख चन्दन को जलाकर कोयलों को बेचना चाहता है, अर्थात् उत्तम वस्तु को जला देता है । और किसी पदार्थ को कुएँ में छोड़ कर फिर उसे लेनेकी इच्छा से बालक जैसे अज्ञान के वश स्वयं कुएँ में गिर पड़ता है, वैसेही मांस से श्राद्ध करनेवाले अज्ञान के प्रभाव से दुर्गति को पाते हैं ।
यज्ञ में हिंसा करने से धर्म नष्ट होता है इस बात को सूचन करनेवाला महाभारत ( वेङ्कटेश्वर प्रेस में छपा हुआ) । आश्वमेधिक पर्व ९१ अध्याय पृ० ६३ में लिखा है