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________________ (४५) हाथ में तेलसे भरा हुआ कटोरा देकर आज्ञा दी कितुम सबलोग कटोरे को ले करके शहरके किले की चारों तरफ प्रदक्षिणा करो, किन्तु पात्रसे रास्तेमें एक भी बूंद तेलका न गिरे अगर गिरेगा तो पहिले को दसहजार अशर्फियों का दण्ड होगा, और दूसरे को पचास हजार, तथा तीसरे को लाख और चौथे को कहा गया कि तुह्मारी जान ही लेली जायगी। राजा की इस आज्ञा के वशीभूत होकर चारों आदमी चले, किन्तु कटोरों के भरपूर होने से कुछ न कुछ गिरने का सम्भव था ही, इसलिये वे लोग धीरे २ बहुत ही सम्हल कर चले; किन्तु वैसा करने पर भी पहिले और दूसरे से आधी दूर पहुँचने पर कितनी ही बूंदें गिरी, तीसरे से अन्त में जाकर कुछ बूंदें गिरी, लेकिन जिससे यह कहा गया था कि तुह्मारी जान ही लेली जायगी, उससे तो एक बूंद भी नहीं गिरी । क्योंकि उसने मन, वचन और कायाकी एकाग्रता से काम किया था; अर्थात् जैसा भरा पुरा कटोरा उसने राजाके पाससे उठाया था वैसा ही पहुँचा दिया। इसलिये राजा देखकर चकित हुआ कि अहो! देवसे भी दुर्लभ कार्य जीविताशासे हो सकता है। इसलिये निश्चयसे जीविताशाको नाश करनेवाले पुरुष महापापी हैं ओर अभयदान देनेवाला महादानी शास्त्र में कहा गया है। यथा" महतामपि दानानां कालेन हीयते फलम् । भीताभयप्रदानस्य क्षय एव न विद्यते " ॥१॥
SR No.002390
Book TitleAhimsa Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1923
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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