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(३९) कर देती है, वैसेही स्त्रीपुरुषके संयोगसे योनिस्थ संमूर्छिम असंख्य और द्वीन्द्रियादि एकसे लेकर नव लाख तक जीव मरजाते हैं तथा गर्भज ९ लाख एकवारही विषयसेवन से नष्ट होजाते हैं और नये नये उत्पन्न होते हैं। कर्मयोग से जो एक दो या तीन जीव रह जाते हैं वह बालकरूप से उत्पन्न होते हैं। मद्य, मधु (शहद)
और मांस, तथा मक्खन में असवय कीड़े उसी रंग के उत्पन्न होते हैं।
पूर्वोक्त बातोंको निश्चय करानेवाली प्राकृतगाथाएँ यहाँ पर दी जाती हैं"तहिं पंचिंदिय जीवा इत्थीजोणीनिवासिणो। मणुआणं नवलक्खा सव्वे पासेई केवली ॥१॥ "इत्थीणं जोणीसु हवन्ति बेइन्दिया य जे जीवा । इको य दुन्नि तिन्निवि लक्खपहुत्तं तु उक्कोसं" ॥२॥ "पुरिसेण सह गयाए तेसिं जीवाणं होइ उद्दवणं । वेणुअ दिलुतेणं तत्ताइ सिलागनाएण" ॥३॥ "इत्थीण जीणिमज्झे गब्बगयाइं हवन्ति जे जीवा । उप्पज्जन्ति चयन्ति य समुच्छिमा असंखया भणिया"॥४॥ "मेहुणसनारूढो नवलक्ख हणेइ सुहुमजीवाणं । तित्थयरेणं भणियं सद्दहिअव्वं पयत्तेणं" ॥५॥ मज्जे महुम्मि मंसम्मि नवणोयम्मि चउत्थए । उप्पज्जन्ति असंखा तमन्ना तत्थ जन्तुणो" ॥ ६॥