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ध्यान, तप,
क्योंकि केवल दया करनेही की सूचना की गई है और अन्य क्लेशों की मनाही की है। उसके उत्तर में समझना चाहिए कि जिसके हृदय में अहिंसा देवी का थोड़ा बहुत प्रतिबिम्ब पड़ा हुआ है उसके हृदय मन्दिर में ब्रह्मचर्य, परोपकार सन्तोष, दान, जपादि समस्त गुणों की श्रेणी बैठी हुई है अगर न हो तो दयादेवी निरुपद्रव रह ही नहीं सकती । अहिंसारूप सुन्दर बगीचे में दान, शील, तप, भावादि क्यारियां सुशोभित हैं । और कारुण्य, मैत्री, प्रमोद, और माध्यस्थ्य- ये चार प्रकारकी भावनारूप बाली से शान्तिरूप जल इधर उधर बहता है । तथा दीर्घायुष्य, श्रेष्ठशरीर, उत्तमगोत्र, पुष्कल द्रव्य, अत्यन्त बल, ठकुराई, आरोग्य, अत्युत्तम कीर्तिलतादि वृक्षों की पङ्क्ति कल्लोल कर रही है, और विवेक, विनय, विद्या, सविचार आदि की सरल और सुन्दर पत्रपक्तियां प्रफुल्लित होकर फैल रही हैं; तथा परोपकार, ज्ञान, ध्यान, तप, जपादि रूप पुष्पपुञ्ज भव्यजीवों को आनन्दित कर रहा है, एवं स्वर्ग, अपवर्ग रूप अविनश्वर फलों का बुभुक्षित मुनि आस्वादन कर रहे हैं; ऐसे अहिंसारूप अमूल्य बगीचे की रक्षा के लिये, मृषावाद - परिहार, अदत्तादान - परिहार, ब्रह्मचर्य - सेवा, परिग्रह - त्याग रूप अटल अभेद्य ( काम क्रोधादि अनादिकाल के अपने शत्रुओं से दुर्लङ्घ्य ) किलेकी आवश्यकता है । विना मर्यादा कोई चीज नहीं रह सकती, अत एव अहिंसारूप अत्युपयोगी बगीचे के बचाने के लिये समस्त धर्मवाले न्यूनाधिक ध्यान सन्ध्यादि धर्मकृत्यों को करते हैं, यह बात सर्वथा