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________________ ( २७ ) भावार्थ - वर्ष २ में एक पुरुष अश्वमेध करके सौवर्ष तक यज्ञ करे और एक पुरुष बिलकुल कोई मांस न खाय तो उनदानों का समान ही फल है । " फलमूलाशनैर्मेध्यैर्मुन्यन्नानां च भोजनैः । न तत्फलमवाप्नोति यन्मांसपरिवर्जनात् " ॥ ५४ ॥ अर्थात् - जो पवित्र फल मूलादि तथा नीवारादि के भोजन करने से भी फल नहीं मिलता वह केवल मांसाहार के त्याग करने से ही मिलता है । " मांस भक्षयितामुत्र यस्य मांसमिहाम्यहम् | एतन्मांसस्य मांसत्वं प्रवदन्ति मनीषिणः " ॥ ५५ ॥ याने जिसका मांस मैं यहां खाता हूं वह मुझको भी जन्मान्तर में अवश्यही खायगा ऐसा " मांस अर्थ महात्मा पुरुषों ने कहा - शब्द का विवेचन—५३ वें श्लोक में लिखा है कि, सौ वर्ष तक अश्वमेध यज्ञ करनेसे जो फल मिलता है वह फल मांसाहार मात्र के त्याग करने से होता है । हिन्दू शास्त्रानुसार अश्वमेध की विधि करना इस समय बहुत कठिन है, क्योंकि पहिले तो समस्त पृथ्वी जीतना चाहिये, तब अश्वमेध यज्ञ करने का अधिकारी होता है और तिसपर भी लाखों रुपये खर्च होते हैं और इतने पर भी हिंसाजन्य दोष होता ही है, ऐसा सांख्यतत्वकौमुदी में दिखलाया है - " स्वल्पः सङ्करः सपरिहारः सप्रत्यवमर्षः ” अर्थात् स्वल्प, सङ्कर याने दोषसहित यज्ञ का पुण्य है, और सपरिहार याने कितने ही प्रायश्चित्त है 1 ..
SR No.002390
Book TitleAhimsa Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1923
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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