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खाते हैं । उसमें कारण यह है कि खर्च ज्यादा होकर भी मांस कम मिलता है, इसी लिए जिस देश में पक्षी पालने की चाल नहीं है वहांपर भिन्न २ तरह के लाखों पक्षी रहने पर भी एक भी बाजार में नहीं बिकता, क्योंकि बेचनेवाले को पैसा नहीं मिलता है। गुजरात बगैरह देश में नीच और दूसरे देशोंसे आए हुए प्रायः करके बावे और फकीर लोग ही पक्षियों को पालते हैं; किन्तु वहां के वासी गृहस्थलोग दयालु होनेसे - पशुशाला में जीवोंको छुड़वा देते हैं। प्रसङ्गवश यहांपर एक बात यह याद आती है कि-समस्त देशों में जिसके कन्या पुत्र नहीं होते हैं वह अनेक देव देवी की मानता करता है और मन्त्र यन्त्र तन्त्रादि का भी प्रयोग करता है, तो भी उसके सन्तति नहीं होती है। उसका कारण प्रायः यही है कि पर्वभवमें उसने अज्ञानदशा से किसीके बच्चों को अपने मां बाप से वियोग कराया होगा, या पक्षियों को पींजरे में डाला होगा; इसीलिए उस समय उनके बालकों को दुःख देने से इस भवम उस पापके उदय होनेसे कितनेही लोगों के पुत्र उत्पन्नही नहीं होता
और जिनके होता भी है तो जीता नहीं है। यद्यपि निप्पुत्र लोग पुत्रके लिए संन्यासी, साधु, फकीर वगैरह की पूजा करते हैं; क्योंकि " सेवाधीन सब कुछ है "यह सामान्य न्याय है; यदि किसी समय योगी और फकीर को प्रसन्न देखकर पुत्र प्राप्ति के लिए लोग प्रार्थना भी करते हैं तो यही करते हैं कि " महाराज ! एक पुत्र की वांछा है उसकी प्राप्ति के लिए कोई उपाय बतलाइये" लेकिन वैसे योगियों और फकीरों को तत्त्वज्ञान तो प्रायः