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________________ (११) मुझे आप पूरा चाण्डाल ही कहेंगे । हा! जब २ वह बकरा मुझे याद आता है, तब २ मेरा कलेजा फटने लगता है, इसलिये मैं निश्चय और मजबूती से कहता हूं कि जो मांसाहार करता है वह सबसे भारी पापी है क्योंकि अन्य अकृत्यों से जीवहिंसा ही भारी अकृत्य है। " __यदि कोई यह कहे कि-हम मारते नहीं और न हमें हिंसा होती है, तो यह कथन उसका वृथा है क्योंकि यदि कोई मांस न खावे तो कसाई बकरे को जबह क्यों करें। अत एव धर्मशास्त्र में भी एक जीव के पीछे आट मनुष्य पातक के भागी गिने गये हैं । यथा " अनुमन्ता विशसिता निहन्ता क्रयविक्रयी। .. संस्कृर्ता चोपहर्ता च खादकश्चेति घातकाः१॥ भावार्थ-मारने में सलाह देनेवाला; शस्त्र से मरेहुए जीवों के अवयवों को पृथक् २ करनेवाला, मारनेवाला, मोललेनेवाला, बेचनेवाला, सँवारनेवाला, पकानेवाला और खानेवाला-ये सब घातकही कहलाते हैं। .. यहां पर कोई कोई मांसाहारी लोग यह प्रश्न करते हैं कि-फलाहारी भी तो घातकही हैं, क्योंकि शास्त्रकारों ने पौधों में भी जीव माना है, फिर फलाहारी और धर्मान्ध पुरुष केवल मांसाहारी ही पर व्यर्थ आक्षेप क्यों करते हैं ? । इसका उत्तर यह है कि-जीव अपने २ पुण्यानुसार जैसे २ अधिकाधिक पदवी को प्राप्त करते हैं वैसे २ अधिक पुण्यवान् गिने जाते हैं; इसी कारण से एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय रूप से जगत में जो जीवों के मूल भेद पांच माने
SR No.002390
Book TitleAhimsa Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1923
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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