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________________ 61 ( १० ) मुसलमान मारे करद सो हिन्दू मारे तरवार । aa haiर दोनों मिलि जै हैं यम के द्वार " || इसासे मांसाहारकरनेवाले हिन्दू आर्य नहीं कहेजासकते; क्योंकि आर्य शब्द से वेही लोग व्यवहार करने योग्य हैं जिनके हृदय में दयाभाव, प्रेमभाव, शौच आदि धर्म विद्यमान हैं. किन्तु मांसाहारी के हृदय में न तो दयाभाव रहता है और न प्रेमभाव | एक मांसाहारी ( जिसने उपदेश पाकर मांसाहार त्याग दिया ) मुझे मिला था, वह जब अपनी हालत कहने लगा तो उसकी आंख से अश्रुपात होने लगा | अश्रुपात होनेका कारण जब मैंने उससे पूछा तो वह कहने लगा कि - " मेरे समान निर्दय और कठोरहृदय, इस दुनियां भर में थोड़ेही पुरुष होंगे। क्योंकि कुछ दिन पहले मैंने एक बड़े सुन्दर बकरे को पाला था, वह मुझे अपना प्रेम पुत्र से भी अधिक दिखलाता था, मैं भी उससे बहुत प्रेम करता था, अतएव वह प्रायः दाना चारा मेरे हाथ से दिये बिना नहीं खाता था और जब मैं कहीं बाहर चला जाता था और आने में दो चार घण्टे की देर हो जाती थी तो वह रास्ते को देख २ कर ब्याँ २ किया करता था, अगर कहीं एक दो दिन लग जाता था तो चारा पानी बिलकुल नहीं खाता था और मेरे आने पर बड़ा आनन्द प्रकट करता था; उसी बकरे को मैंने अपने हाथसे मांस के लिए मार डाला और उस मांस को आए हुए पाहुनों ( प्राघूर्णिक ) के साथ मैंने भी खाया । यदि उस बकरे के मरनेकी हालत मैं आपके सामने कहूँ तो
SR No.002390
Book TitleAhimsa Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1923
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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