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________________ (९) भेदहै, क्योंकि मुसलमान के हाथ का जल हिन्दू नहीं पी सकते किन्तु उन्हें हिन्दुओं के हाथ का पानी ग्रहण करने में कोई परहेज़ नहीं है । उसमें कारण यह है कि मुसलमान अपने भोजन में प्रधान मांसही रखते हैं । यदि हिन्दू भी वैसाही करने लगें तो फिर परस्पर भेदही क्या रहेगा ? अर्थात् जैसे, प्रायः सभी मुसलमान बकरीद के दिन बकरे वगैरह जानवरों की जान लेते हैं, वैसेही बहुत से हिन्दू लोग नवरात्र में बकरे आदि जीवों को मारते हैं; एवं जैसे मुसलमान अपनी दावत में यदि मत्स्यमांस का विशेष व्यवहार करते हैं तो वह दावत उत्तम गिनी जाती है, वैसे ही यदि श्राद्ध में हरिणादि मांस का व्यवहार हिन्दू लोग करें तो वह श्राद्ध उत्तम गिना जाता है; तथा जैसे मुसलमान लोग खुदा के हुक्म से जीव मारने में पाप न मानकर खुदा के हुक्म की तामीली करने से खुश होते हैं, वैसेही हिन्दूलोग देव पूजा-यज्ञक्रिया मधुपर्क-श्राद्धादि में जीवहिंसा को हिंसा न मानकर अहिंसाही मानते हैं; इतनाही नहीं, बल्कि मरनेवाले और मारनेवाले दोनों की उत्तम गति मानते हैं। अब यहां पर मध्यस्थ दृष्टि से विचार करने पर हिन्दू और मुसलमानों में बहुत भेद मालूम नहीं पड़ता, क्योंकि जो हिन्दूलोग मांस नहीं खाते और मुसलमानों के हाथ का जल नहीं पीते हैं वे तो ठीकही हैं किन्तु मांसाहार करने परभी जो हिन्दू सफाई दिखाते हैं वह उनका बिलकुल पाखण्डही है, क्योंकि दोनों मरकर बराबर दुर्गति पावेंगे, अर्थात् दोनों एकही रास्ते पर चलनेवाले हैं । इसपर कबीर ने कहा है:
SR No.002390
Book TitleAhimsa Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1923
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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