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________________ ( ८ ) से मांसाहारी कुष्ठादि रोग से पीड़ित होकर परम कष्ट सहते हुए मर भी जाते हैं । जो कोई इन कष्टों से बच भी जाता है तो उसमें पापानुबन्धी पुण्य का उदय ही कारण समझना चाहिए । अर्थात् जब उस पुण्य का क्षय होगा तब जन्मान्तर में वह अत्यन्त दुःख का अनुभव करेगा | गोस्वामी तुलसीदास जी कहगये हैं: " जबतक पुरविल पुण्यकी पूजी नहीं करार | तबतक सब कुछ माफ है औगुन करो हजार " ॥ १ ॥ प्रायः मांसाहारी की मृत्यु भी विशेष दुःख से ही होती है और उसके मृत्यु के समय कितनेही स्पष्ट तथा गुप्त रोग उत्पन्न होते हैं, इस बात का लोग प्रायः अनुभव किया करते हैं । मनुष्यों की स्वाभाविक प्रकृति फलाहारीही है क्योंकि मांसाहारी जीवों के दाँत मनुष्य के दाँतों से विलक्षण होते हैं और जठराग्नि भी उनकी मनुष्यों से भिन्न प्रकार की ही होती है, तथा स्वभाव भी विचित्र दिखलाई देता है; एवं समस्त मांसाहारी जीव जिह्वा ही से जल पीते हैं किन्तु मनुष्यजाति तो मुख से पीती है । अतएव यह सिद्ध हुआ कि मनुष्य की जाति स्वाभाविक मांसाहारी नहीं है, फिरभी जो मांस खाते हैं चे पलाद ( पलमत्तीति पलादः ) गिने जाते हैं । मुसलमान और हिन्दुओं में खान पान ही से विशेष
SR No.002390
Book TitleAhimsa Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1923
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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