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________________ (१०६) को मारकर अशान्ति से शान्ति चाहनेवाले दिखाई पडते हैं; इसीलिये महाशान्त-स्वभाव के पक्षपाती भी, हेमच. न्द्राचार्य आदि आचार्यों ने जीवदयापर अत्यन्त प्रीति रखने के कारण हिंसाशास्त्र के उपदेश करनेवाले पुरुषों को नोस्तिकातिनास्तिकशब्द से कहा है। ... यथा"ये चक्रुः क्रूरकर्माणः शास्त्रं हिंसोपदेशकम् । क ते यास्यन्ति नरके नास्तिकेभ्योऽपि नास्तिकाः?"॥३७॥ : भावार्थ-जिन क्रूरकर्माओं ने हिंसोपदेशक शास्त्रों को रचा है, वे नास्तिकों से भी नास्तिक होने के कारण किस नरक के भागी होंगे यह नहीं मालूम पडता है ? । अर्थात वे चाहे अपने मन में आस्तिक होनेका दावा भलेही करें, वस्तुतः तो वे नास्तिकों से भी नास्तिक हैं । क्योंकि नास्तिकों के फन्दे में साधारण भी मनुष्य सहज में नहीं आते, इसलिये वे लोग आस्तिकों का वेष धरकर मुग्धलोगों को विश्वास दिलाते हैं, अतएव वे बिचारे अनभिज्ञ अनर्थकारिणी हिंसा आदि निन्दनीय कृत्यों को भी धर्मही मानने लगते हैं । जिस हिंसा का दोष कदापि छूटही नहीं सकता उस हिंसा करनेवाले की नरकगति हिंसोपदेशकों ने भी अवश्य मानी है, किन्तु विचार करने से मुझे तो यही मालूम होता है कि जब हिंसोपदेशकलोग सत्यवक्ता से युक्तिपूर्वक विचार में परास्त होने लगे हैं तब डरकर अपने भक्तों के पास अपने सत्यवक्ता होने का घमण्ड
SR No.002390
Book TitleAhimsa Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1923
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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