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नरकादि दुःख में भाग लेने की शक्ति तुमलोगों में है ?, जो मुझको झूठ मूठ हिंसा में फंसाते हो ? । इत्यादि अनेक युक्तिद्वारा बेचारा सुलस पाप कर्म से किसी प्रकार मुक्त हुआ । शास्त्रकारों ने इसीलिये तो सुलस को श्रेष्ठ दिखलाया है । ___जो कोई प्राणी इसी तरह जीवहिंसा का त्याग करेगा वही श्रेष्ठ गिना जायगा। किन्तु शान्ति के लिये जो पुरुष हिंसा करते हैं वे तो मूर्ख ही हैं; क्योंकि दूसरे की अशान्ति उत्पन्न करके अपनी शान्ति करनेवाले को विचारशून्य पुरुष समझना चाहिये । अतएव बहुत जगह जब कोई उपद्रव होता है तब धर्मात्मा पुरुष तो ईश्वर भजन, दान, पूजादि करते हैं, किन्तु नास्तिक और निर्दय मनुष्य प्रायः बलिदान देने की कोशिश करते हैं और अन्त में वे लोग भद्रिकलोगों को भी उस उन्मार्ग पर ले जाते हैं। ___ यथा" विश्वस्तो मुग्धधीर्लोकः पात्यते नरकावनौ । अहो ! नृशंसर्लोभान्धैर्हिसाशास्त्रोपदेशकैः " ॥१॥
पृष्ठ २७६ यो० शा० द्वि० प्र० भावार्थ-बिचारे विश्वासू भद्रिक बुद्धिवाले लोग भी निर्दय, लोभान्ध और हिंसाशास्त्र के उपदेशकों से वञ्चित होकर नरकभूमि में जाते हैं; अर्थात् वे निर्दय, अपने भक्तों को नरक में ले जाते हैं। . यह कुरीति तो गुजरात आदि सामान्य देश में भी प्रचलित है, याने निर्दय मनुष्य बकरे बगैरह जीव