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" मातरीव परं यान्ति विषमाणि मृदूनि च । विश्वासहि भूतानि सर्वाणि शमशालिनि" ॥ ६२ ॥ यो० वा० पृष्ठ ६ अर्थात् - मोक्षद्वार में शम, सदविचार, सन्तोष, और साधुसमागमरूप चार द्वारपाल हैं, इन चारों द्वारपालों के विचार करने में पहिले ही शम का बिचार किया है । उसमें पूर्वोक्त ६२ वें श्लोक में लिखा है कि शमशाली पुरुष से संपूर्ण क्रूरजन्तु और शान्तजीव विश्वास पाते हैं । अर्थात् जीवों को उनसे बिलकुल भय नहीं
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होता है, क्योंकि वे तो दयाप्रधान पुरुष हैं ।
जीवहिंसा करनेवाले जीवों की दुर्दशा कैसी होती है, देखिये
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यथा
श्रूयते प्राणिघातेन रौद्रध्यानपरायणौ ।
सुभूमो ब्रह्मदत्तश्च सप्तमं नरकं गतौ " ॥ २७ ॥
पृष्ठ २०२, योगशास्त्र द्वितीय प्रकाश.
भावार्थ-सुना जाता है कि प्राणियों का घात करके रौद्रध्यान में तत्पर सुभूम और ब्रह्मदत्त दोनों सातवीं नरक में गये । इसी कारण से जो लोग लङ्गडे लूले होते हैं, सो तो अच्छा ही हैं, लेकिन संपूर्ण अङ्गवाला होकर भी जो हिंसा करता है वह ठीक नहीं है
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कुणिर्वरं वरं पङ्गरशरीरी वरं पुमान् । अपि संपूर्णसर्वाङ्गो न तु हिंसापरायणः" ॥ २८ ॥ पृष्ठ २६० यो० शा० द्वि० प्र०