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________________ इस श्लोक का भावार्थ ऊपर ही लिख दिया गया है । यदि यहाँ पर कोई शङ्का करे कि जिस हिंसा से रौद्रध्यान हो, वह नहीं करनी, किन्तु शान्ति के लिये की हुई हिंसा से तो रौद्रध्यान नहीं होता, इसलिये वह हिंसा तो निर्दोष है। इसके उत्तर में हेमचन्द्राचार्य कहते हैं कि " हिंसा विघ्नाय जायेत विघ्नशान्त्यै कृताऽपि हि । कुलाचारधियाऽप्येषा कृता कुलविनाशिनी" ॥ २९ ॥ पृष्ठ २६०, यो० शा० द्वि० प्र० . याने विघ्न की शान्ति के लिए की हुई हिंसा भी, उलटे विघ्न को ही करनेवाली होती है । जैसे किसीकी कुल की रीति है कि अमुक दिन हिंसा करनी चाहिये; किन्तु वह हिंसा भी कुल का नाश करनेवाली ही है। देखिये कुलक्रम से प्राप्त भी हिंसा को छोडकर कालसौकरिक कसाई का पुत्र सुलस कैसा सुखी हुआ ? । यथा" अपि वंशक्रमायातां यस्तु हिंसां परित्यजेत् । स श्रेष्ठः सुलस इव कालसौकरिकात्मजः " ॥३०॥ . पृ २६१ यो० शा० द्वि० प्र० यदाह"अवि इच्छन्ति य मरणं न य परपोडं कुणन्ति मणसा वि। जे सुविइअसुगइपहा सोयरिअसुओजहा सुलसो' ॥१॥ यो० द्वि०, पृ २६१
SR No.002390
Book TitleAhimsa Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1923
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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