________________
(९४) भाव में मग्न होकर महात्मा के उपदेश का पान करने लिये उत्साही से मालूम पड़ते हैं। इसलिये जिसके ऊपर दयादेवी की कृपा होती है, उसको सब प्रकार की निर्मल बुद्धि उत्पन्न हो जाती है, और वही जगत् का पूज्य बनता है, तथा उसीकी महिमा अवर्णनीय होती है। यथा"सारङ्गी सिंहशावं स्पृशति सुतधिया नन्दनी व्याघ्रपोतं
मार्जारी हंसवालं प्रणयपरवशात् केकिकान्ता भुजङ्गम् । वैराण्याऽऽजन्मजातान्यपि गलितमदाजन्तवोऽन्ये त्यजेयु
दृष्ट्वा सौम्यैकरूढं प्रशमितकलुषं योगिनं क्षीणमोहम्"॥१॥
भावार्थ-शान्ति में लीन और निष्कलुषितभाववाले योगी को देख कर कितनेही जीव जन्मजात वैर को जलाञ्जलि देते हैं; अर्थात् हरिणी सिंह के बच्चे को पुत्र की तरह प्रेम से स्पर्श करती है, और गौ व्याघ्र के बच्चे को निजपुत्र की बुद्धि से प्रेम के वश होकर स्पर्श करती है; तथा बिल्ली हंस के बालक को स्नेह बुद्धि से देखती है और मयूरी भी सर्प से मित्रता करती है, इत्यादि ।
विवेचन-समस्त जन्तुओं पर दयाभाव रखनेवाला पुरुषही महात्मा गिना जाता है, जिससे दयाभाव कुछभी दूषित न हो इसीलिये अन्य नियमों को भी महात्मा लोग पालन करते हैं। क्योंकि समस्त महात्मा पुरुषों का लक्ष्य अहिंसा ही पर है और उनका उपदेश भी वैसाही होता है । यदि मध्यस्थ बुद्धि से उनलोगों का सिद्धान्त देखा जाय तो न्यूनाधिक रीति से सभी बात जीवदयापूर्वक