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________________ ४५४ सिद्धान्तकौमुद्याम् । २ कर्ण अक्षि नख केश पाद गुल्फ भ्रू शृङ्ग दन्त ओष्ठ पृष्ठ || इति कर्णादिः ॥२५॥ १५० तदस्य संजातं तारकादिभ्य इतच् | ५|२| ३६ || तारका पुष्पकर्णक मञ्जरी ऋजीष क्षण सूत्र मूत्र निष्क्रमण पुरीष उच्चार प्रचार विचार कुड्मल कण्टक मुसल मुकुल कुसुम कुतूहल स्तबक ( स्तवक ) किसलय पल्लव खण्ड वेग निद्रा मुद्रा बुभुक्षा धेनुष्या पिपासा श्रद्धा अभ्र पुलक अङ्गारक वर्णक द्रोह सुख दुःख उत्कण्ठा भर व्याधि वर्मन् त्रण गौरव शास्त्र तरंग तिलक चन्द्रक अन्धकार गर्व कुमुर ( मुकुर ) हर्ष उत्कर्ष रण कुवलय गर्ध क्षुध् सीमन्त ज्वर गर रोग रोमाञ्च षण्डा कज्जल तृप् कोरक कल्लोल स्थपुट फल कञ्चुक शृङ्गार अङ्कुर शैवल बकुल श्वभ्र आराल कलङ्क कर्दम कन्दल मूर्च्छा अङ्गार हस्तक प्रतिबिम्ब विनतत्र प्रत्यय दीक्षा गर्ज । गर्भादप्राणिनि ॥ इति तारकादिराकृतिगणः ॥ २६ ॥ १५१ विमुक्तादिभ्योऽण् |५|२|६१ ॥ विमुक्त देवासुर रक्षोसुर उपसद सुवर्ण परिसारक सदसत् वसु मरुत् पत्नीवत् वसुमत् महीयत्व सत्वत बर्हवत् दशार्ण दशार्ह वयस् हविर्धान पतत्रिन् महित्री अस्यहत्य सोमापूषन् इडा अम्माविष्णू उर्वशी वृत्रहन् ॥ इति विमुक्तादिः ॥ २७ ॥ १५१ गोषदादिभ्यो वुन् |५|२|६२ ॥ गोषद इषेत्वा मातरिश्वन् देवस्यत्वा देवीरापः कृष्णोस्याखरेष्ठः देवीं धिया ( देवींधियं ) रक्षोहण युञ्जान अञ्जन प्रभूत प्रतूर्त कृशानु ( कृशाकु ) ॥ इति गोषदादिः ॥ २८ ॥ १५१ आकर्षादिभ्यः कन् | ५|२|६४ ॥ आकर्ष ( आकष ) त्सरु पिशाच पिचण्ड अशनि अश्मन् निचय जय चय विजय आचय नय पाद दीप हद हाद ह्लाद गद्गद शकुनि ॥ इत्याकर्षादिः ॥ २९ ॥ १५२ इष्टादिभ्यश्च |५|२|८८ ॥ इष्ट पूर्त उपासादित निगदित परिगदित दरिवादित निकथित निषादित निपठित संकलित परिकलित संरक्षित परिरक्षित अर्चित गणित अवकीर्ण आयुक्त गृहीत आम्रात श्रुत अधीत अवधान आसेवित अवधारित अवकल्पित निराकृत उपकृत उपाकृत अनुयुक्त अनुगणित अनुपठित व्याकुलित ॥ इतीष्टादिः ॥ ३० ॥ १५३ रसादिभ्यश्च ।५/२/९५ ॥ रस रूप वर्ण गन्ध स्पर्श शब्द स्नेह भाव । गुणात् एकाचः ॥ इति रसादिः ॥ ३१ ॥ १५४ सिध्मादिभ्यश्च | ५ | २|९७ || सिध्म गड्ड मणि नाभि बीज वीणा कृष्ण निष्पाव पांसु पार्श्व पशु हनु सक्त मास (मांस) पाष्णिधमन्योर्दीर्घश्च । वातदन्तबलललाटानामूच । जटाघटाकालाः क्षेपे । पर्ण उदक प्रज्ञा सक्थ कर्ण स्नेह शीत श्याम पिङ्ग पित्त
SR No.002377
Book TitleVaiyakaran Siddhant Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Lakshman Shastri
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1938
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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