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________________ गणपाठे पञ्चमोऽध्यायः । ४५३ चुक्र आम्र कष्ट लवण ताम्र शीत उष्ण जड बधिर पण्डित मधुर मूर्ख मूक स्थिर वेर्यात - लातमतिमनःशारदानाम् । समो मतिमनसोः । जवन ॥ इति दृढादिः ॥ १७ ॥ १४६ गुणवचनब्राह्मणादिभ्यः कर्मणि च । ५ । १ । १२४ ॥ ब्राह्मण वाडव माणव । अर्हतो नुम् । चोर धूर्त आराधय विराधय अपराधय उपराधय एकभाव द्विभाव त्रिभाव अन्यभाव अक्षेत्रज्ञ संवादिन् संवेशिन् संभाषिन् बहुभाषिन् शीर्षघातिन् विघातिन् समस्थ विषमस्थ परमस्थ मध्यस्थ अनीश्वर कुशल चपल निपुण पिशुन कुतूहल क्षेत्रज्ञ विश्व बालिश अलस दुःपुरुष कापुरुष राजन् गणपति अधिपति गड्डुल दायाद विशस्ति विषम विपात निपात । सर्ववेदादिभ्यः स्वार्थे । चतुर्वेदस्योभयपदवृद्धिश्च । शौटीर || आकृतिगणोऽयम् ॥ इति ब्राह्मणादिः ॥ १८ ॥ १४६ * चतुर्वर्णादिभ्य उभयपदवृद्धिश्च * | ५ | १|१२४ || चतुर्वर्ण चतुराश्रम सर्वविद्य त्रिलोक त्रिखर षड्गुण सेना अनन्तर संनिधि समीप उपमा सुख तदर्थ इति मणि ॥ इति चतुर्वर्णादिः ॥ १९ ॥ १४७ पत्यन्त पुरोहितादिभ्यो यक् | ५|२| १२८ ॥ पुरोहित । राजासे ग्रामिक fufuse सुहित बालमन्द ( बाल मन्द ) खण्डिक दण्डिक वर्मिक कर्मिक धर्मिक शीलिक सूतिक मूलिक तिलक अञ्जलिक ( अञ्जनिक ) रूपिक ऋषिक पुत्रिक अविक छत्रिक पर्थिक पथिक पर्मिक प्रतीक सारथि आस्तिक सूचिक संरक्ष सूचक ( संरक्षसूचक ) नास्तिक अजानिक शाक्कर नागर चूडिक || इति पुरोहितादिः ॥ २० ॥ प्राणभृज्जातिवयोवचनोद्गात्रादिभ्योऽञ् | ५ | १|१२९ ॥ १४७ उद्गातृ उन्नेतृ प्रतिहर्तृ प्रशास्तृ होतृ पोतृ हर्तृ रथगणक पत्तिगणक सु दुष्ठु अध्वर्यु वधू सुभग मन्त्र ॥ इत्युद्गात्रादिः ॥ २१ ॥ १४७ हायनान्तयुवादिभ्योऽण् | ५ | १|१३० ॥ युवन् स्थविर होतृ यजमान पुरुषासे । भ्रातृ कुतुक श्रमण ( श्रवण ) कटुक कमण्डलु कुस्त्री सुस्त्री दुःस्त्री सुहृदय दुर्हृदय सुहृद् दुर्हृद् सुभ्रातृ दुर्भ्रातृ वृषल परिव्राजक सब्रह्मचारिन् अनृशंस । हृदयासे । कुशल चपल निपुण पिशुन कुतूहल क्षेत्रज्ञ । श्रोत्रियस्य यलोपश्च ॥ इति युवादिः ॥ २२ ॥ १४७ द्वन्द्वमनोज्ञादिभ्यश्च | ५|१|१३३ ॥ मनोज्ञ प्रियरूप अभिरूप कल्याण मेधाविन् आढ्य कुलपुत्र छान्दस छात्र श्रोत्रिय चोर धूर्त विश्वदेव युवन् कुपुत्र ग्रामपुत्र ग्रामकुलाल ग्रामड (ग्रामषण्ड ) ग्रामकुमार सुकुमार बहुल अवश्यपुत्र अमुष्यपुत्र अमुष्यकुल सारपुत्र शतपुत्र ॥ इति मनोज्ञादिः ॥ २३ ॥ १४९ तस्य पाकमूले पील्वादिकर्णादिभ्यः कुणब्जाहचौ |५|२|२४ || १ पीलु कर्कन्धू (कर्कन्धु) शमी करीर बल ( कुवल ) बदर अश्वत्थ ॥ खदिर इति पील्वादिः ॥ २४ ॥
SR No.002377
Book TitleVaiyakaran Siddhant Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Lakshman Shastri
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1938
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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