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सिद्धान्तकौमुद्याम् ।
१३० बिल्वादिभ्योऽण् | ४ | ३ | १३६ ॥ बिल्व त्रीहि काण्ड मुद्ग मसूर गोधूम इक्षु वेणु गवेधुका कर्पासी पाटली कर्कन्धू कुटीर ॥ इति बिल्वादिः ॥ ७९ ॥
१३० पलाशादिभ्यो वा | ४ | ३ | १४१ ॥ पलाश खदिर शिंशपा स्पन्दन पुलाक करीर शिरीष यवास विकङ्कत ॥ इति पलाशादिः ॥ ८० ॥
१३० नित्यं वृद्धशरादिभ्यः | ४ | ३ | १४४ ॥ शर दर्भ मृद् ( मृत्) कुटी तृण सोम बल्वज ॥ इति शरादिः ॥ ८१ ॥
१३१ तालादिभ्योऽण् ||३|१५२ || तालाद्धनुषि । बार्हिण इन्द्रालिश इन्द्रादृश इन्द्रायुध चय श्यामाक पीयूक्षा ॥ इति तालादिः ॥ ८२ ॥
१३१ प्राणिरजतादिभ्योऽञ् ||३|१५४ ॥ रजत सीस लोह उदुम्बर नीप दारु रोहितक बिभीतक पीतदारु तीव्रदारु त्रिकण्टक कण्टकार || इति रजतादिः ॥ ८३ ॥
१३१ लक्षादिभ्योऽण् | ४ | ३ | १६४ ॥ लक्ष न्यग्रोध अश्वत्थ इङ्गुदी शिग्रु रुरु क बृहती ॥ इति प्रक्षादिः ॥ ८४ ॥
१३१ हरीतक्यादिभ्यश्च | ४ | ३ | १६७ ॥ हरीतकी कोशातकी नखरञ्जनी श दाडी दोडी श्वेतपाकी अर्जुनपाकी द्राक्षा काला ध्वाक्षा गभीका कण्टकारिका पिप्पली चिम्पा ( चिञ्चा) शेफालिका ॥ इति हरितक्यादिः ॥ ८५ ॥
१३२ * माशब्दादिभ्य उपसंख्यानम् * |४|४|१ || माशब्दः नित्यशब्दः कार्यशब्दः ॥ इति माशब्दादिः ।। ८६ ।।
१३२ * आहौ प्रभूतादिभ्यः * |४|४|१ ॥ प्रभूत पर्याप्त ॥ इति प्रभूतादिः ८७ १३२ * पृच्छतौ सुनातादिभ्यः * | ४|४|१ || सुनात सुखरात्रि सुखशयन ॥ इति सुनातादिः ॥ ८८ ॥
१३२ * गच्छतौ परदारादिभ्यः * |४|४|१ || परदार गुरुतल्प इति परदारादिः ॥ ८९ ॥
१३२ पर्पादिभ्यः ष्ठन् | ४|४|१०|| पर्प अश्व अश्वत्थ रथ जाल न्यास व्याल । पादः प || इति पर्पादिः ॥ ९० ॥
१३२ वेतनादिभ्यो जीवति |४|४|१२ ॥ वेतन वाहन अर्धवाह धनुर्दण्ड जाल वेश उपवेश प्रेषण उपवस्ति सुख शय्या शक्ति उपनिषद् उपदेश स्फिज् (स्फिज ) पाद उपस्थ उपस्थान उपहस्त || इति वेतनादि: ॥ ९१ ॥
१३३ हरत्युत्सङ्गादिभ्यः । ४|४|१५ ॥ उत्सङ्ग उडुप उत्पुत उत्पन्न उत्पुट पिटक पिटाक ॥ इत्युत्सङ्गादिः ॥ ९२ ॥
१३३ भस्त्रादिभ्यः ष्ठन् | ४|४|१६ ॥ भस्त्रा भरट मरण शीर्षभार शीर्षेभार अंसभार अंसेभार ॥ इति भस्त्रादिः ॥ ९३ ॥