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गणपाठे चतुर्थोऽध्यायः ।
४५१ १३३ निवृत्तेऽक्षयूतादिभ्यः।४।४।१९।। अक्षयूत [जानुप्रहृत ] जङ्घाप्रहृत जवाहत पादखेदन कण्टकमर्दन गतानुगत गतागत यातोपयात अनुगत ॥ इत्यक्षद्यूतादिः ॥९४॥
१३४ अण्महिष्यादिभ्यः ।४।४।४८ ॥ महिषी प्रजापति प्रजावती प्रलेपिका विलेपिका अनुलेपिका पुरोहित मणिपाली अनुवारक [ अनुचारक ] होतृ यजमान ॥ इति महिष्यादिः॥९५॥
१३४ किसरादिभ्यष्ठन् ।४।४।५३ ॥ किसर नरद नलद स्यागल गतर गुग्गुलु उशीर हरिद्रा हरिद्रु पर्गी ( पर्णी) ॥ इति किसरादिः ॥९६॥
१३५ छत्रादिभ्यो णः।४।४।६२ ॥ छत्र शिक्षा प्ररोह स्था बुभुक्षा चुरा तितिक्षा उपस्थान कृषि कर्मन् विश्वधा तपस् सत्य अनृत विशिखा विशिका भक्षा उदस्थान पुरोडा विक्षा चुक्षा मन्द्र ॥ इति छत्रादिः॥९७॥
१३६ प्रतिजनादिभ्यः खञ् ।४।४।९९ ॥ प्रतिजन इदंयुग संयुग समयुग परयुग परकुल परस्यकुल अमुष्यकुल सर्वजन विश्वजन महाजन पञ्चजन ॥ इति प्रतिजनादिः॥९८॥
१३६ कथादिभ्यष्ठञ् ।४।४।१०२ ॥ कथा विकथा विश्वकथा संकथा वितण्डा कुष्ट विद् ( कुष्ठवित् ) जनवाद जनेवाद जनोवाद वृत्ति संग्रह गुण गण आयुर्वेद ॥ इति कथादिः ॥ ९९॥
१३७ गुडादिभ्यष्ठञ् ।४।४।१०३ ॥ गुड कुल्माष सक्तु अपूप मांसौदन इक्षु वेणु सङ्ग्राम संघात संक्राम संवाह प्रवास निवास उपवास ॥ इति गुडादिः ॥१०॥
पञ्चमोऽध्यायः। १३७ उगवादिभ्यो यत् ।५।१।२ ॥ गो हविस् अक्षर विष बर्हिस् अष्टका स्वदा युग मेधा सुच् । नाभि नभं च । शुनः संप्रसारणं वा च दीर्घत्वं तत्संनियोगेन चान्तोदात्तत्वम् । ऊधसोऽनङ् । कूप खद दर खर असुर अध्वन् (अध्वन) क्षर वेद बीज दीस (दीप्त ) ॥ इति उगवादिः ॥१॥
१३७ विभाषा हविरपूपादिभ्यः ।५।१।४ ॥ अपूप तण्डुल अभ्युष ( अभ्यूष) अभ्योष अवोष अभ्येष पृथुक ओदन सूप पूप किण्व प्रदीप मुसल कटक कर्णवेष्टक इर्गल अर्गल । अन्नविकारेभ्यश्च । यूप स्थूणा दीप अश्व पत्र ॥ इत्यपूपादिः॥२॥
१३८ असमासे निष्कादिभ्यः ।५।१।२० ॥ निष्क पण पाद माष वाह द्रोण षष्टि ॥ इति निष्कादिः ॥३॥
१४० गोयचोऽसंख्यापरिमाणाश्वादेर्यत् ।५।१।३९ ॥ अश्व अश्मन् गण ऊर्णा ( उर्म ) उमा भङ्गा क्षण (गङ्गा) वर्षा वसु ॥ इत्यश्वादिः॥४॥