SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 452
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४८ सिद्धान्तकौमुद्याम् । । ११८ नडादीनां कुक्च ।४।२।९१ ॥ नड प्लक्ष बिल्व वेणु वेत्र वेतस इक्षु काष्ठ कपोत तृण । क्रुञ्चा हस्खत्वं च । तक्षन्नलोपश्च ॥ इति नडादिः ॥ ५९॥ ११८ कत्र्यादिभ्यो ढकञ् ।४।२।९५॥ कत्रि उम्भि पुष्कर पुष्कल मोदन कुम्भी कुण्डिन नगरी माहिष्मती वर्मती उख्या ग्राम । कुड्याया यलोपश्च ॥ इति कत्र्यादिः ६० ११८ नद्यादिभ्यो ढक् ।४।२।९७ ॥ नदी मही वाराणसी श्रावस्ती कौशाम्बी वनकौशाम्बी काशपरी काशफारी ( काशफरी ) खादिरी पूर्वनगरी पाठा माया शाल्वदा सेतकी। वाडवाया वृषे ॥ इति नद्यादिः॥ ६१॥ . ११९ प्रस्थोत्तरपदपलद्यादिकोपधादण् ।४।२।११० ॥ पलदी परिषद् रोमक वाहीक कलकीट बहुकीट जालकीट कमलकीट कमलकीकर कमलभिदा गोष्ठी नैकती परिखा शूरसेन गोमती पटच्चर उदपान यकृल्लोम ॥ इति पलद्यादिः॥ ६२॥ १२० काश्यादिभ्यष्टचिठौ ।४।२।११६ ॥ काशि चेदि (वेदि) सांयाति संवाह अच्युत मोदमान शकुलाद हस्तिकर्पू कुनामन् हिरण्य करण गोवासन भारङ्गी अरिंदम अरित्र देवदत्त दशग्राम शौवावतान युवराज उपराज देवराज मोदन सिन्धुमित्र दासमित्र सुधामित्र सोममित्र छागमित्र साधामित्र ( सधमित्र ) । आपदादिपूर्वपदात्कालान्तात् । आपद् ऊर्ध्व तत् ॥ इति काश्यादिः ॥ ६३ ॥ १२१ धूमादिभ्यश्च ।४।२।१२७ ॥ धूम पडण्ड शशादन अर्जुनाव माहकस्थली आनकस्थली माहिषस्थली मानस्थली अदृस्थली मद्रकस्थली समुद्रस्थली दाण्डायनस्थली राजस्थली विदेह राजगृह सात्रासाह शप्प मित्रवर्ध ( मित्रवर्ध) मज्जाली मद्रकूल आजीकूल व्यहव (न्याहाव) त्र्यहव (त्र्याहाव ) संस्फाय बर्बर वर्त्य गर्त आनर्त माठर पाथेय घोष पल्ली आराज्ञी धार्तराज्ञी आवय तीर्थ । कूलात्सौवीरेषु । समुद्रान्नावि मनुप्ये च । कुक्षि अन्तरीप द्वीप अरुण उज्जयनी पट्टार दक्षिणापथ साकेत ॥ इति धूमादिः ॥ ६४॥ १२१ कच्छादिभ्यश्च ।४।२।१३३॥ कच्छ सिन्धु वर्ण गन्धार मधुमत् कम्बोज कश्मीर साल्व कुरु अनुषण्ड द्वीप अनूप अजवाह विजापक कल्तर रङ्कु ॥ इति कच्छादिः॥६५॥ १२१ गहादिभ्यश्च ।४।२।१३८ ॥ गह अन्तस्थ सम विषम मध्य । मध्यंदिन चरणे । उत्तम अङ्ग वङ्ग मगध पूर्वपक्ष अपरपक्ष अधमशाख उत्तमशाख एकशाख समानशाख समानग्राम एकग्राम एकवृक्ष एकपलाश इष्वग्र इष्वनीक अवस्यन्दन कामप्रस्थ खाडायन काठेरणि लावेरणि सौमित्रि शैशिरि आसुत् दैवशर्मि श्रौति आहिंसि आमित्रि व्याडिवैजि आध्यश्वि आनृशंसि शौङ्गि आमिशर्मि भौजि वाराटकी वाल्मिकी (वाल्मीकि ) क्षैमवृद्धि आश्वत्थि औद्गाहमानि ऐकविन्दवि दन्ताग्र हंस तत्वग्र ( तन्त्वग्र ) उत्तर अन्तर ( अनन्तर ) मुखपार्श्वतसोर्लोपः । जनपरयोः कुक्च । देवस्य च ॥ इति गहादिः॥ वेणुकादिभ्यश्छण् ॥ आकृतिगणः ॥६६॥
SR No.002377
Book TitleVaiyakaran Siddhant Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Lakshman Shastri
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1938
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy