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________________ सिद्धान्तकौमुद्याम् । वराहकमुदादिभ्यः ।४।२।८० ॥ १ अरीहण ( अहीरण ) द्रुधण दुहण भलग (भगल ) उलन्द किरण सांपरायण क्रौष्ट्रायण औष्ट्रायण त्रैगायन मैत्रायण भास्त्रायण वैमतायण (वैमतायन ) गौमतायन सोमतायण सौसायन धौमतायन सौमायन ऐन्द्रायण कौंद्रायण ( कौद्रायण ) खाडायन शाण्डिल्यायन रायस्पोष विपथ विपाश उद्दण्ड उदश्चन खाण्डवीरण वीरण काशकृत्स्न जाम्बवत शिंशपा रैवत (रेवत ) बिल्ब सुयज्ञ शिरीष बधिर जम्बु खदिर सुशर्मन् ( सशर्मन् ) भलतृ भलन्दन खण्डु कलन यज्ञदत्त ॥ इत्यरीहणादिः॥ ३९॥ ____२ कृशाश्व अरिष्ट अरिश्म वेश्मन् विशाल लोमश रोमश रोमक लोमक शबल कूटवर्चल सुवर्चल सुकर सूकर प्रातर् (प्रतर) सदृश पुरग पुराग मुख धूम अजिन विनत अवनत कुविद्यास (कुविट्यास) पराशर अरुस् अयस् मौद्गल्याकर ( मौद्गल्य युकर)॥ इति कृशाश्वादिः॥४०॥ ३ ऋश्य ( हृष्य ) न्यग्रोध शर निलीन [ नियास निवात ] निधान निबन्धन (निबन्ध) [विबद्ध ] परिगूढ [ उपगूढ ] असनि सित मत वेश्मन् उत्तराश्मन् अश्मन् स्थूलबाहु खदिर शर्करा अनडुह ( अनड्डह् ) अरड्ड परिवंश वेणु वीरण खण्ड दण्ड परिवृत्त कर्दम अंशु ॥ इत्यश्यादिः॥४१॥ ४ कुमुद शर्करा न्यग्रोध इक्कट संकट कङ्कट गर्त बीज परिवाप निर्यास शकट कच मधु शिरीष अश्व अश्वत्थ बल्वज यवास कूप विककट दशग्राम ॥ इति कुमुदादिः॥ ४२ ॥ __५ काश पाश अश्वत्थ पलाश पीयूक्षा चरण वास नड वन कर्दम कच्छूल कङ्कट गुह बिस तृण कर्पूर बर्बर मधुर ग्रह कपित्थ जतु सीपाल ।। इति काशादिः॥४३॥ ६ तृण नड मूल वन पर्ण वर्ण वराण बिल पुल फल अर्जुन अर्ण युवर्ण बल चरण बुस ॥ इति तृणादिः ॥४४॥ ७ प्रेक्षा फलका (हलका) बन्धुका ध्रुवका क्षिपका न्यग्रोध इक्कट कङ्कट संकट कट कूप बुक पुक पुट मह परिवाप यवाष धुवका गर्त कूपक हिरण्य ॥ इति प्रेक्षादिः॥४५॥ - १२६ ॥ ८ अश्मन् यूथ ऊष मीन नद दर्भ वृन्द गुद खण्ड नग शिखा कीट पाम कन्द कान्द कुल गह गुड कुण्डल पीन गुह ॥ इत्यश्मादिः ॥ ४६॥ __९ सखि अग्निदत्त वायुदत्त सखिदत्त [गोपिल ] भल्लपाल ( भल्ल पाल) चक्र चक्रवाक छगल अशोक करवीर वासव वीर पूर वज्र कुशीरक शीहर (सीहर ) सरक सरस समर समल सुरस रोह तमाल कदल सप्तल ॥ इति सख्यादिः ॥४७॥ १० संकाश कपिल कश्मीर [ समीर ] सूरसेन सरक सूर । सुपथिन्पन्थ च । (यूप यूथ ) अंश अङ्ग नासा पलित अनुनाश अश्मन् कूट मलिन दश कुम्भ शीर्ष चिरन्त (विरत) समल सीर पञ्जर मन्थ नल रोमन् लोमन् पुलिन सुपरि कटिप सकर्णक वृष्टि तीर्थ अगस्ति विकर नासिका ॥ इति संकाशादिः॥४८॥
SR No.002377
Book TitleVaiyakaran Siddhant Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Lakshman Shastri
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1938
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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