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________________ गणपाठे द्वितीयोऽध्यायः । ४३७ शाटीपटीरम् शाटी प्रच्छदम् शाटीपट्टिकम् उष्ट्रखरम् उष्ट्रशशम् मूत्रशकृत् मूत्रपुरीषम् यकृन्मेदः मांसशोणितम् दर्भशरम् दर्भपूतीकम् अर्जनशिरीषम् अर्जनपुरुषम् तृणोलपम् ( तृणोपलम् ) दासीदासम् कुटीकुटम् भागवती भागवतम् ॥ इति गवाश्वप्रभृतीनि ॥ १६ ॥ ८६ न दधिपयआदीनि | २|४|१४ ॥ दधिपयसी सर्पिर्मधुनी मधुसर्पिषी ब्रह्मप्रजापती शिववैश्रवणौ स्कन्दविशाखौ परिव्राजक कौशिकौ ( परित्रादौ शिकौ ) प्रवर्ग्योपसदौ शुक्लकृष्णौ इध्माबर्हिषी दीक्षातपसी [ श्रद्धातपसी मेघातपसी ] अध्ययनतपसी उलूखलमुसले आद्यवसाने श्रद्धामेधे ऋक्सामे वाङ्मनसे ॥ इति दधिपयआदीनि ॥ १२ ॥ ७५ अर्धर्चाः पुंसि च |२| ४ | ३१ ॥ अर्धर्च गोमय कषाय कार्षापण कुतप कुलप (कुणप ) कपाट शङ्ख गूथ यूथ ध्वज कबन्ध पद्म गृह सरक कंस दिवस यूष अन्धकार दण्ड कमण्डलु मण्ड भूत द्वीप द्यूत चक्र धर्म कर्मन् मोदक शतमान यान नख नखर चरण पुच्छ दाडिम हिम रजत सक्त पिधान सार पात्र घृत सैन्धव औषध आढक चषक द्रोण खलीन पात्रीव षष्टिक वारबाण ( वारवारण ) प्रोथ कपित्थ [ शुष्क ] शाल शील शुक्ल (शुल्क) शीधु कवच रेणु [ ऋण ] कपट शीकर मुसल सुवर्ण वर्ण पूर्व चमस क्षीर कर्ष आकाश अष्टापद मङ्गल निधन निर्यास जृम्भ वृत्त पुस्त बुस्त क्ष्वेडित शृङ्ग निगड [ खल ] मूलक मधु मूल स्थूल शराव नाल वत्र विमान मुख प्रग्रीव शूल वज्र कटक कण्टक [ कर्पट] शिखर कल्क ( वल्कल ) नटमक (नाटमस्तक) वलय कुसुम तृण पङ्क कुण्डल किरीट [ कुमुद ] अर्बुद अंङ्कुश तिमिर अश्राय भूषण इक्कस ( इष्वास ) मुकुल वसन्त तटाक ( तडाग ) पिटक विटङ्क विडङ्ग पिण्याक माष कोश फलक दिन दैवत पिनाक समर स्थाणु अनीक उपवास शाक कर्पास [विशाल ] चषाल (चखाल ) खण्ड दर विटप [रण बल मक ] मृगाल हस्त आई हल [ सूत्र ] ताण्डव गाण्डीव मण्डप पटह सौध योध पार्श्व शरीर फल [ छल ] पुर ( पुरा ) राष्ट्र अम्बर बिम्ब कुट्टिम मण्डक (कुक्कुट ) कुडप ककुद खण्डल तोमर तोरण मञ्चक पञ्चक पुङ्ख मध्य [ बाल ] छाल वल्मीक वर्ष वस्त्र वसु देह उद्यान उद्योग स्नेह स्तेन [ स्तन खर] संगम निष्क क्षेम शूक क्षेत्र पवित्र [ यौवन कलह ] मालक (पालक) मूषिक [ मण्डल वल्कल ] कुज (कुञ्च ) विहार लोह विषाण भवन अरण्य पुलिन दृढ आसन ऐरावत शूर्प तीर्थ लोमन ( लोमश ) तमाल लोह दण्डक शपथ प्रतिसर दारु घनुस् मान वर्चस्क कूर्च तण्डक मठ सहस्र ओदन प्रवाल शकट अपराह्न नीड शकल तण्डुल || इत्यर्धर्चादिः ॥ १८ ॥ ९९ पैलादिभ्यश्च | २|४|५९ ॥ पैल शालकि सात्यकि सात्यंकामि राहवि रावण औदञ्चि औदत्रज औदमेधि औदवज्रि ( औदमज्जि ) औदभृज्जि दैवस्थानि पैङ्गलोदाय राहक्षति भौलिङ्गि राणि औदन्यि औद्गाहमानि औज्जिहानि औदशुद्धि तद्राजाच्चाणः (तद्राज ) ॥ आकृतिगणोऽयम् ॥ इति पैलादिः ॥ १९ ॥
SR No.002377
Book TitleVaiyakaran Siddhant Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Lakshman Shastri
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1938
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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