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ध्यान की विधियां
तंजलि कहते हैं: बारी-बारी से
श्वास बाहर निकालने और रोकने द्वारा भी मन शांत होता है।
जब कभी तुम अनुभव करते हो कि मन शांत नहीं, वह तनावपूर्ण है, चिंतित है, शोर से भरा है, निरंतर सपने देख रहा है, तो एक काम करना-पहले गहरी श्वास छोड़ना। सदा प्रारंभ करना श्वास छोड़ने द्वारा ही। जितना हो सके उतनी गहराई से
मनोदशाओं को बाहर फेंकना
कुछ है।
श्वास छोड़ना; वायु बाहर फेंक देना। वायु जितना तुमसे हो सके। फिर दोबारा ठहर तक। लेकिन श्वास पूर्णतया बाहर फेंक बाहर फेंकने के साथ ही मनोदशा भी बाहर जाना कुछ सैकेंड के लिए। यह अंतराल देना होता है। समग्रता से श्वास छोड़ो और फेंक दी जाएगी, क्योंकि श्वसन ही सब उतना ही होना चाहिए जितना श्वास छोड़ने समग्रता से श्वास लो, और एक लय बना
के बाद तुम बनाए रखते हो। यदि तुम लो। श्वास खींचने के बाद रुके रहना; जितना संभव हो श्वास को बाहर श्वास छोड़ने के बाद तीन सैकेंड के लिए श्वास छोड़ने के बाद रुके रहना। तुरंत तुम निकाल देना। पेट को भीतर खींचना और रुकते हो, तो श्वास को भीतर लेकर भी अनुभव करोगे कि एक परिवर्तन तुम्हारे उसी तरह बने रहना कुछ सैकेंड के लिए, तीन सैकेंड के लिए रुको। श्वास बाहर सम्पूर्ण अस्तित्व में उतर रहा है। वह श्वास मत लेना। फिर शरीर को श्वास फेंको और रुके रहो तीन सैकेंड तक; मनोदशा जा चुकी होगी। एक नई लेने देना। गहराई से श्वास भीतर लेना, श्वास भीतर लो और रुके रहो तीन सैकेंड आबोहवा तुममें प्रवेश कर चुकी होगी।।