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श्वास : एक सेतु-ध्यान तक
तक पहुंच जाएगा तब स्वप्न पर और स्वयं तृतीय नेत्र पर केंद्रित होने के कारण ही उसे रोक सकते हो, न ही निर्मित कर मृत्यु पर अधिकार हो जाएगा।" जब तुम्हें तुम स्वप्नों को यथार्थ मानने लगते हो; तुम सकते हो। नींद आने लगे तो उस विधि का अभ्यास यह महसूस ही नहीं कर सकते कि वे परंतु यदि तुम इस स्मरण के साथ करना है-केवल तभी करना है, किसी स्वप्न हैं। वे यथार्थ हो जाते हैं। सुबह जब सोओ कि हृदय प्राण से भर रहा है, हर अन्य समय पर नहीं। जब तुम्हें नींद आने तुम जागोगो तभी तुम्हें पता चलेगा कि “मैं श्वास के साथ प्राण उसे छू जाते हैं, तो तुम लगे, तभी। वही क्षण इस विधि के स्वप्न देख रहा था।" लेकिन यह अनुभूति अपने स्वप्नों के स्वामी हो जाओगे-और अभ्यास के लिए उचित है। तुम नींद में और निष्पत्ति बाद की है। स्वप्न में तुम नहीं यह स्वामित्व अपूर्व है। फिर तुम जो स्वप्न उतर रहे हो। धीरे-धीरे नींद तुम पर जान सकते कि तुम स्वप्न देख रहे हो। चाहो देख सकते हो। बस सोते समय आविष्ट हो रही है। कुछ ही क्षणों में, यदि तुम यह जान लो, तो दो तल हो गए। इतना खयाल रखो कि "मुझे यह स्वप्न तुम्हारी चेतना विलीन हो जाएगी; तुम स्वप्न तो चल रहा है, परंतु तुम जागे हुए देखना है," और तुम्हें वही स्वप्न आएगा। जाग्रत न रह जाओगे। इससे पहले कि वह हो, सजग हो। जो व्यक्ति स्वप्न में भी सोते समय बस इतना ही कहो कि, "मुझे क्षण आए, सजग हो जाओ-श्वास और जाग जाता है उसके लिए यह सूत्र अदभुत फलां स्वप्न नहीं देखना है," और वह उसके अदृश्य अंश, प्राण, के प्रति सजग है। यह कहता है, “तब स्वप्न पर और स्वप्न तुम्हारे मन में प्रवेश नहीं कर हो जाओ, और उसे हृदय तक आता हुआ स्वयं मृत्यु पर अधिकार हो जाएगा।" सकता। महसूस करो।
यदि तुम स्वप्नों के प्रति सजग हो सको, लेकिन स्वप्न-प्रक्रिया के स्वामी हो - यदि यह हो जाए–कि तुम अदृश्य तो तुम स्वप्न निर्मित भी कर सकते हो। जाने का क्या उपयोग है? क्या यह व्यर्थ श्वास को हृदय में आता महसूस कर रहे साधारणतया तुम स्वप्न निर्मित नहीं कर नहीं है ? नहीं, यह व्यर्थ नहीं है। एक बार हो और नींद तुम पर आविष्ट हो सकते। मनुष्य कितना नपुंसक है! तुम तुम अपने स्वप्नों के स्वामी हो जाओ तो जाए–तो तुम स्वप्न में भी सजग रहोगे। स्वप्न तक निर्मित नहीं कर सकते। तुम फिर तुम्हें कभी कोई स्वप्न नहीं आएगा। तुम्हें इसका बोध होगा कि तुम स्वप्न देख स्वप्न निर्मित ही नहीं कर सकते! यदि तुम वह व्यर्थ हो जाता है। जब तुम अपने रहे हो। साधारणतया हम नहीं जानते कि किसी विशेष चीज का स्वप्न देखना चाहो, स्वप्नों के स्वामी हो जाते हो तो हम स्वप्न देख रहे हैं। जब तुम स्वप्न तो नहीं देख सकते; यह तुम्हारे हाथों में स्वप्न-प्रक्रिया रुक जाती है। अब उसका देखते हो तब तुम सोचते हो कि यह यथार्थ नहीं है। मनुष्य कितना शक्तिविहीन है! कोई उपयोग न रहा। और जब है। वह भी तृतीय नेत्र के कारण ही होता स्वप्न तक निर्मित नहीं किए जा सकते। स्वप्न-प्रक्रिया रुक जाती है तब तुम्हारी है। तुमने किसी सोए हुए व्यक्ति को तुम तो बस स्वप्नों के एक शिकार हो, नींद का एक बिलकुल ही अलग गुणधर्म देखा? उसकी आंखें ऊपर चढ़ जाती हैं उनके निर्माता नहीं। स्वप्न तुम पर घटता होता है, और उसका गुणधर्म वही हो जाता और तृतीय नेत्र पर केंद्रित हो जाती हैं। है; तुम कुछ भी नहीं कर सकते। न ही तुम है जो मृत्यु का है। 6