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ध्यान की विधियां
व ने कहाः ललाट के - मध्य में अस्पृश्य श्वास को, प्राण को टिकाओ। जब निद्रा के क्षण में वह हृदय तक पहुंच जाएगा तब स्वप्न पर और स्वयं मृत्यु पर अधिकार हो जाएगा।
इस विधि को तीन हिस्सों में लो। पहले, तुम श्वास में प्राण को, उसके अस्पृश्य अंश को, अदृश्य अंश को, अभौतिक ऊर्जा को अनुभव करने में
स्वप्न पर स्वामित्व
सक्षम होओ। यह अनुभूति होती है जब जाती है, तब भी अनुभूति होगी, परंतु कम श्वास तो एक से ही वाहन हैं, परंतु भीतर तुम्हारा होश दोनों भौहों के मध्य स्थित सरलता से। श्वास के अदृश्य अंश को आती श्वास प्राण से भरी होती है और होता है। फिर वह अनुभूति सरलता से हो जान लेने की सरलतम अवस्था है तृतीय बाहर जाती श्वास रिक्त होती है: तुमने जाती है। यदि तुम अंतराल के प्रति सजग नेत्र पर केंद्रित हो जाना। लेकिन तम कहीं प्राणों को पी लिया, और श्वास रिक्त होओ, तब भी वह अनुभूति होती है, भी केंद्रित हो जाओ, तो वह अनुभूति होती हो गई। लेकिन थोड़ी कम सरलता से। यदि तुम है। तुम प्राण को भीतर की ओर बहता यह सूत्र अत्यंत महत्वपूर्ण है : “ललाट नाभिकेंद्र के प्रति सजग हो जाओ जहां महसूस करने लगते हो।
के मध्य में अस्पृश्य श्वास को, प्राण को आकर श्वास छूती है और बाहर लौट भीतर आती श्वास और बाहर जाती टिकाओ। जब निद्रा के क्षण में वह हृदय