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________________ श्वास : एक सेतु-ध्यान तक जाएगा। तुम अभिनय के एक पात्र बन कर ने तुम्हें करने को दिया है। तुम्हें एक होगा; वहां होश का एक अंश मात्र होगा। अभिनय करते रहोगे, परंतु अंतराल में भी अभिनय दिया गया है, तुम उसे खेल रहे संसार तुम्हारे होश के समीप ही कहीं सतत केंद्रित रहोगे। यदि तुम अंतराल को हो; तुमने उससे तादात्म्य बना लिया है। घटता है। तुम उसे महसूस कर सकते हो, भूल जाओ, तो तुम अभिनय नहीं कर रहे; उस तादात्म्य को तोड़ने के लिए, इस विधि तुम्हें उसका बोध हो सकता है, लेकिन तब तुम कर्ता हो गए। फिर यह एक नाटक का उपयोग करो। अब परिधि की घटना महत्वपूर्ण न रही। न रहा। तुमने इसे गलती से जीवन समझ यह विधि इसीलिए है कि तुम स्वयं को वह तो ऐसा है जैसे तुम्हारे साथ घटित ही लिया। हमने यही किया है। हर व्यक्ति एक मनोनाट्य बना लो-मात्र एक खेल न हो रहा। मैं इसे दोहराता हूं: यदि तुम यही समझता है कि वह जीवन जी रहा है। बना लो। तुम दो श्वासों के बीच अंतराल इस विधि को साधते हो तो तुम्हारा पूरा यह जीवन नहीं है। यह तो बस एक पर केंद्रित रहो, और परिधि पर जीवन जीवन ऐसे हो जाएगा जैसे तुम्हारे साथ अभिनय है जो समाज ने, घटनाओं ने, चलता रहे। यदि तुम्हारा पूरा होश केंद्र पर नहीं घट रहा हो-जैसे किसी और के संस्कृति ने, परंपरा ने, देश ने, परिस्थिति है तो फिर मुख्य होश परिधि पर नहीं साथ घट रहा हो। 5 79
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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