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________________ ध्यान की विधियां व ने कहाः सांसारिक । कामों में लगे हुए, होश को दो श्वासों के बीच टिकाओ। इस अभ्यास से कुछ ही दिनों में नया जन्म हो जाएगा। तुम जो भी करो, अपने होश को दो श्वासों के बीच के अंतराल पर रखो। लेकिन काम-काज में लगे हुए ही इसे साधना है। हमने ऐसी ही एक अन्य विधि पर चर्चा की है। अब इसमें यह भेद है कि इसे सांसारिक काम-काज में लगे हुए ही साधना है। इसे एकांत में मत साधो। यह बाजार में अंतराल को देखना अभ्यास तभी करना है जब तुम कुछ कार्य मन को भटकाना चाहती है। सक्रियता केंद्र। सतह पर, परिधि पर कार्य करते कर रहे होओ। तुम खा रहे हो ः खाते रहो, फिर-फिर तुम्हारा ध्यान चाहती है। भटको रहो; उसे रोको मत। लेकिन केंद्र पर भी और अंतराल के प्रति सजग रहो। तुम चल मत। अंतराल पर स्थिर रहो, और कृत्य सजगतापूर्वक कार्य करते रहो। उससे रहे हो: चलते रहो, और अंतराल के प्रति को मत रोको; कृत्य को चलने दो। तुम्हारे क्या होगा? तुम्हारा कृत्य एक अभिनय सजग रहो। तुम सोने लगे होः लेट जाओ, अस्तित्व के दो तल हो जाएंगे—करना हो जाएगा जैसे कि तुम किसी नाटक नींद को आने दो। लेकिन अंतराल के प्रति और होना। के पात्र हो। सजग बने रहो। हमारे अस्तित्व के दो तल हैं करने का यदि इस विधि का अभ्यास किया जाए सक्रियता में ही क्यों? क्योंकि सक्रियता जगत और होने का जगत, परिधि और तो तुम्हारा पूरा जीवन एक लंबा नाटक बन
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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