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श्वास : एक सेतु-ध्यान तक
चाहिए। तुम धन्य हुए। तुमने जान लिया; को–उसके मार्ग को देखो। जब श्वास की आत्मोपलब्धि इस विधि पर, इसी घटना घट गई।
तुम्हारे नासापुटों को छुए, उसे वहां महसूस विधि पर ही आधारित थी। तुम्हें श्वास को प्रशिक्षित नहीं करना करो। फिर श्वास को भीतर जाने दो। पूरी यदि तुम श्वास के प्रति सजगता, श्वास है। उसे जैसी है वैसी छोड़ दो। इतनी सरल सजगता से उसके साथ बढ़ो। जब श्वास के प्रति बोध का अभ्यास करते रहो, तो विधि क्यों? यह इतनी सरल लगती है। के साथ गहरे और नीचे उतरो, तो श्वास एक दिन गुप-चुप ही तुम अंतराल पर सत्य को जानने के लिए इतनी सरल का साथ मत छोड़ो। न तो उससे आगे पहुंच जाओगे। जैसे-जैसे तुम्हारा बोध विधि? सत्य को जानने का अर्थ है: निकलो, न उससे पीछे पड़ो। उसके तीव्र, गहरा और सघन होगा, जैसे-जैसे उसको जान लेना जो न जन्मता है न मरता बिलकुल साथ-साथ चलो। यह स्मरण तुम्हारा बोध स्पष्ट आकार लेगा-पूरा है, उस शाश्वत तत्व को जान लेना जो रखोः न तो आगे निकलो; न छाया की संसार बाहर छूट जाएगा; भीतर आती या सदा है। तुम्हें बाहर जाती श्वास का बोध भांति उसके पीछे चलो। उसके साथ बाहर जाती श्वास ही तुम्हारा संसार रह हो सकता है, तुम्हें भीतर आती श्वास का युगपत होकर चलो।
जाती है, तुम्हारी चेतना का इतना ही बोध हो सकता है, परंतु दोनों के बीच के श्वास और चेतना एक हो जाएं। श्वास कार्यक्षेत्र रह जाता है—अचानक तुम उस अंतराल को तुम कभी नहीं जान पाते। भीतर जाती है, तुम भी भीतर जाओ। तभी अंतराल को अनुभव कर ही लोगे जिसमें
यह प्रयोग करो। अचानक सूत्र तुम्हारे उस बिंदु को पकड़ पाना संभव होगा जो कोई श्वास नहीं होती। हाथ लग जाएगा और तुम उसे पा दो श्वासों के मध्य में है। यह सरल नहीं जब तुम सूक्ष्मता से श्वास के साथ गति सकते होः वह पहले से ही मौजूद है। होगा।
कर रहे हो, जब कोई श्वास न बचे, तो तुममें या तुम्हारी संरचना में कुछ भी श्वास के साथ भीतर जाओ, फिर तुम बोधरहित कैसे रह सकते हो? जोड़ना नहीं है : वह तो पहले से ही मौजूद श्वास के साथ बाहर आओः अचानक तुम सजग हो जाते हो कि श्वास है। बस एक होश को छोड़कर और भीतर-बाहर, भीतर-बाहर। बुद्ध ने नहीं है, और वह क्षण आएगा जब तुम सबकुछ है। तो कैसे इसे करें? पहले, विशेषकर इस विधि का उपयोग किया, महसूस करोगे कि न तो श्वास बाहर जा भीतर आती श्वास के प्रति सजग हो इसीलिए यह विधि एक बौद्ध विधि बन रही है न भीतर आ रही है। श्वास पूरी तरह जाओ। उसको देखो। बाकी सब भूल गई है। बुद्ध की भाषा में इसे 'अनापानसति ठहर गई है। उस ठहरने में ही मंगल-क्षण जाओः बस भीतर आती श्वास योग' के नाम से जाना जाता है। और बुद्ध घटता है। 4