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________________ शि व ने कहा: हे देवी, यह अनुभव दो श्वासों के बीच घटित हो सकता है। श्वास के भीतर आने के पश्चात और बाहर लौटने के पूर्व का अंतराल है— मंगल क्षण । जब तुम्हारी श्वास भीतर आए, तो अवलोकन करो। फिर उसके ऊपर उठने के पहले, बाहर की ओर मुड़ने के पहले एक क्षण के लिए, या क्षण के ध्यान की विधियां श्वासों के बीच के अंतराल को देखना हजारवें अंश के लिए श्वास प्रक्रिया ठहर जाती है। एक श्वास भीतर आती है; फिर एक बिंदु है जहां श्वास ठहर जाती है। फिर श्वास बाहर जाती है। जब श्वास बाहर जा चुकती है तो फिर वहां एक क्षण के लिए, या क्षणांश के लिए ठहर जाती है। फिर श्वास भीतर आती है। श्वास के भीतर या बाहर के लिए मुड़ने के पहले एक क्षण है जब तुम श्वास नहीं लेते। उसी क्षण में ध्यान की घटना संभव है, क्योंकि जब तुम श्वास नहीं लेते तो संसार में नहीं होते। इसे समझो : जब तुम श्वास नहीं ले रहे तो मृत हो; तुम हो तो, लेकिन मृत। लेकिन यह क्षण इतना छोटा है कि तुम उसे कभी देख नहीं पाते। भीतर आती श्वास एक नया जन्म है; बाहर जाती श्वास मृत्यु है। बाहर जाती श्वास मृत्यु की पर्याय है; भीतर आती श्वास जीवन की । तो हर श्वास के साथ तुम मरते हो और पुनरुज्जीवित होते हो । दोनों के बीच का अंतराल बहुत छोटा है, परंतु तीक्ष्ण तथा निष्ठापूर्ण अवलोकन और सजगता से तुम उस अंतराल को अनुभव कर पाओगे। फिर कुछ और नहीं 76
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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