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श्वास: एक सेतु-ध्यान तक
ये दो सूत्र हैं: यदि तुम्हें भय हो कि पेट वह क्षण आता है...निश्चित ही आता इत्यादि हो सकते हैं। से श्वास लेने और इसके उठने व गिरने के है। वह कभी एक क्षण भी देर से नहीं देखने की प्रक्रिया महत्वपूर्ण है, आप प्रति सजग होने से तुम्हारे शरीर की आया है। एक बार तुम ठीक लय में आ क्या देख रहे हैं यह इतना महत्वपूर्ण नहीं सुडौलता नष्ट होती है...पुरुषों का जाओ, तो अचानक वह तुममें विस्फोटित है, तो स्मरण रखिए कि जो कुछ भी सुडौलता में अधिक रस हो सकता है। होता है और तुम्हें रूपांतरित कर जाता है। उठता हो उससे तादात्म्य नहीं बनाना है; फिर उनके लिए यह सरल है कि वे पुराना मनुष्य बिदा हुआ और नये मनुष्य प्रश्नों और समस्याओं को इस प्रकार नासापटों के पास होश को ले जाएं जहां का आगमन हुआ। 2
देखा जा सकता है जैसे वे रहस्य हों से श्वास भीतर प्रवेश करती है। भीतर
जिनका आनंद लिया जा सके। जाती श्वास को देखो और जब श्वास बैठना बाहर जाए तो उसको देखो।
विपस्सना चंक्रमण ये तीन ढंग हैं। कोई भी एक काम देगा। चालीस से साठ मिनट तक बैठने के और यदि तुम दो विधियां एक साथ करना लिए पर्याप्त रूप से विश्रामपूर्ण और पैरों द्वारा धरती को छूने के बोध पर चाहो, तो दो विधियां एक साथ कर सजग स्थिति खोज लें। पीठ और सिर आधारित यह एक मद्धिम व सामान्य सकते हो; फिर प्रयास और सघन हो सीधे, आंखें बंद तथा श्वास सामान्य पदगति है। जाएगा। यदि तुम तीनों विधियों को एक होनी चाहिए। जितने स्थिर रह सकें रहें, आप चाहें तो एक वर्तुल में चल साथ करना चाहो, तो तीनों विधियों स्थिति तभी बदलें जब वह बहुत जरूरी सकते हैं अथवा दस से पंद्रह कदम को एक साथ कर सकते हो। फिर हो।
आगे-पीछे सीधे चलते रह सकते संभावनाएं तीव्रतर होंगी। लेकिन यह सब ___ बैठे हुए प्रमुख लक्ष्य है आती-जाती हैं-कमरे के भीतर या कमरे के बाहर। तुम पर निर्भर करता है—जो भी तुम्हें श्वास के कारण नाभि से थोड़ा ऊपर पेट आंखें इस प्रकार झुकी हों कि जमीन पर सरल लगे।
के उठने व गिरने को देखना। यह कोई कुछ ही कदम आगे तक दिखाई दे। स्मरण रखो: जो सरल है वही सही है। एकाग्रता की विधि नहीं है, अतः श्वास चलते समय पूरा ध्यान उस संपर्क पर
जैसे-जैसे ध्यान थिर और मन शांत को देखते समय बहुत-सी अन्य बातें रहना चाहिए जब दोनों पैर धरती को छूते होगा, अहंकार विलीन हो जाएगा। तुम तो आपके होश को बहका ले जाएंगी। हैं। यदि और चीजें उठती हैं, तो पैरों पर रहोगे, परंतु कोई मैं-भाव नहीं रहेगा। विपस्सना में कुछ भी अवरोध नहीं है, ध्यान देना बंद करें, उस चीज को देखें फिर द्वार खुले हैं।
इसलिए जब कुछ और उठे, तो श्वास । जिसने आपका ध्यान अवरुद्ध किया है ___ एक प्रेमपूर्ण अभीप्सा से भर कर, हृदय को देखना रोक दें, और जो भी हो रहा है और फिर पैरों पर लौट आएं। में स्वागत का भाव लिए बस प्रतीक्षा । उस पर तब तक ध्यान दें जब तक कि यह विधि भी बैठने की विधि के करो-उस महान क्षण की किसी भी । श्वास पर वापस लौटना संभव न हो। समान ही है-परंतु देखने का विषय व्यक्ति के जीवन के महानतम क्षण इसमें विचार, भावनाएं, निर्णय, शारीरिक इसमें भिन्न है। आप बीस से तीस मिनट की-बुद्धत्व की।
संवेदनाएं और बाह्य जगत के प्रभाव तक चल सकते हैं। 3