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________________ ध्यान की विधियां गुजरे बस उसके द्रष्टा बने रहो। तुम्हारे और तीसरी विधि है, जब श्वास भीतर जाओ; तो जो खिलाड़ी और हृदय के परदे पर से जो भी भाव गुजरे, प्रवेश करने लगे, जब श्वास तुम्हारे व्यायामशास्त्री हैं, और जो लोग शरीर पर बस साक्षी बने रहो-उसमें उलझो मत, नासापुटों से भीतर जाने लगे तभी उसके कार्य करते रहे हैं, उनके लिए यह उससे तादात्म्य मत बनाओ, मूल्यांकन मत प्रति सजग हो जाना। नियम-सा ही बन गया है। करो कि क्या अच्छा है, क्या बुरा है; वह उस दूसरी अति पर उसे अनुभव जापान ही एकमात्र अपवाद है जहां वे तुम्हारे ध्यान का अंग नहीं है। करो-पेट से दूसरी अति पर-नासापुट इस बात की फिक्र नहीं लेते कि छाती चौड़ी । दूसरी विधि है श्वास की; अपनी श्वास पर श्वास का स्पर्श अनुभव करो। भीतर होनी चाहिए और पेट भीतर खिंचा होना के प्रति सजग होना। जैसे ही श्वास भीतर जाती हुई श्वास तुम्हारे नासापुटों को एक चाहिए। पेट को भीतर खिचे रखने के लिए जाती है, तुम्हारा पेट ऊपर उठने लगता है, प्रकार की शीतलता देती है। फिर श्वास एक विशेष अनुशासन की जरूरत होती और जब श्वास बाहर जाती है, तो पेट बाहर जाती है...श्वास भीतर आई, श्वास है; यह स्वाभाविक नहीं है। जापान ने फिर से नीचे बैठने लगता है। तो दूसरी बाहर गई। स्वाभाविक मार्ग का चुनाव किया है, विधि है पेट के प्रति उसके उठने और यह भी संभव है। यह स्त्रियों की अपेक्षा इसीलिए जब तुम बुद्ध की कोई जापानी गिरने के प्रति सजग हो जाना। पेट के पुरुषों के लिए अधिक सरल है। स्त्री पेट मूर्ति देखोगे तो चकित होओगे। तुम तत्क्षण उठने और गिरने का बोध हो...और पेट के प्रति अधिक सजग है। अधिकांश पुरुष भेद कर सकते हो कि मूर्ति भारतीय है जीवन स्रोत के सबसे निकट है क्योंकि तो इतनी गहरी श्वास भी नहीं लेते कि वह अथवा जापानी है। गौतम बुद्ध की भारतीय बच्चा नाभि के द्वारा मां के जीवन से जुड़ा पेट तक पहुंच जाए। उनकी छाती ही ऊपर प्रतिमाओं की देह बड़ी सुडौल होती है। पेट होता है। नाभि के पीछे उसके जीवन का और नीचे होती है, क्योंकि संसार भर में बहुत छोटा और छाती चौड़ी होती है। स्रोत है। तो जब तुम्हारा पेट उठता है, तो सुडौलता की एक गलत ढंग की धारणा लेकिन जापानी बुद्ध बिलकुल भिन्न होते यह वास्तव में जीवन ऊर्जा है, जीवन की प्रचलित है। जब तुम्हारी छाती ऊंची होती हैं; उनकी छाती तो लगभग शांत ही होती धारा है जो हर श्वास के साथ ऊपर उठ है और पेट लगभग न के बराबर होता है है, क्योंकि वे पेट से श्वास लेते हैं, लेकिन रही है और नीचे गिर रही है। यह विधि तो शरीर को निश्चित ही एक सुंदर आकृति उनका पेट बड़ा होता है। यह बहुत अच्छा कठिन नहीं है, शायद ज्यादा सरल है, मिलती है। तो नहीं लगता क्योंकि संसार में क्योंकि यह एक सीधी विधि है। पुरुष ने छाती तक ही श्वास ले जाने का प्रचलित धारणा बहुत पुरानी है। लेकिन __पहली विधि में तुम्हें अपने शरीर के प्रति चुनाव किया है, इससे छाती तो बड़ी होती पेट से श्वास लेना अधिक स्वाभाविक है, सजग होना है, अपने मन के प्रति सजग जाती है और पेट सिकुड़ जाता है। ऐसा अधिक विश्रामपूर्ण है। होना है, अपने भावों, भावदशाओं के प्रति शरीर उसे अधिक सुडौल लगता है। रात जब तुम सोते हो तो ऐसा होता है; सजग होना है। तो इसमें तीन चरण हैं। जापान को छोड़कर, संसार भर में तुम छाती से श्वास नहीं लेते, पेट से दूसरी विधि में एक ही चरण है: बस पेट खिलाड़ी और खिलाड़ियों के शिक्षक श्वास लेते हो। इसीलिए तो रात ऐसा ऊपर और नीचे जा रहा है। और परिणाम फेफड़ों को भरके, छाती को फुलाकर, विश्रामपूर्ण अनुभव बन जाती है। सोने के एक ही है। जैसे-जैसे तुम पेट के प्रति और पेट को भीतर खींच कर श्वास लेने बाद सुबह तुम इतने ताजा, इतने युवा सजग होते जाते हो, मन शांत हो जाता है, पर जोर देते हैं। उनका आदर्श सिंह है महसूस करते हो, क्योंकि रात भर तुमने हृदय शांत हो जाता है, भावदशाएं मिट जिसकी छाती बड़ी होती है और पेट बहुत स्वाभाविक रूप से श्वास ली...तुम जाती हैं। छोटा होता है। तो सिंह की भांति हो जापान में थे!
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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