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श्वास: एक सेतु-ध्यान तक
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'पस्सना वह ध्यान है जिसने
संसार में किसी भी अन्य ध्यान की अपेक्षा सबसे अधिक लोगों को संबुद्ध किया है, क्योंकि यह सार मात्र ही है। अन्य ध्यान विधियों में भी वही सार है, परंतु भिन्न रूपों में; उनमें कुछ असार भी जुड़ गया है। लेकिन विपस्सना शुद्ध सार है। न तुम उसमें से कुछ निकाल सकते हो, न सुधार के लिए उसमें कुछ जोड़ सकते हो। . विपस्सना इतनी सरल है कि एक छोटा बच्चा भी कर सकता है। वास्तव में छोटा
विपस्सना
बच्चा तुमसे भी बेहतर कर सकता है, सजगता। चलो, तो होश के साथ चलो। के प्रति सजग रहो जो खाने के लिए जरूरी क्योंकि वह अभी मन के कचरे से नहीं भरा हाथ हिलाओ, तो होश से हिलाओ, यह होती हैं। नहाते समय जो शीतलता तुम्हें है; वह अभी निर्मल और निर्दोष है। जानते हुए कि तुम हाथ हिला रहे हो। तुम मिल रही है, जो पानी तुम पर गिर रहा है
विपस्सना तीन प्रकार से की जा सकती उसे बिना होश के, यंत्र की भांति भी हिला और जो अपूर्व आनंद उससे मिल रहा है है-तुम्हें कौन-सी विधि सबसे ठीक सकते हो...तुम सुबह सैर पर निकले हो; उस सब के प्रति सजग रहो-बस सजग बैठती है, इसका तुम चुनाव कर सकते तुम अपने पैरों के प्रति सजग हुए बिना भी हो रहो। यह अजागरूकता की दशा में नहीं हो। चल सकते हो।
होना चाहिए। पहली विधि है: अपने कृत्यों, अपने अपने शरीर की गतिविधियों के प्रति और तुम्हारे मन के विषय में भी ऐसा ही शरीर, अपने मन, अपने हृदय के प्रति सजग रहो। खाते समय, उन गतिविधियों है। तुम्हारे मन के परदे पर जो भी विचार