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सना कुछ ऊर्जा तुम्हारे अंतकेंद्र से परिधि पर ले आती है। ऊर्जा हंसने के पीछे छाया की भांति बहने लगती है। तुमने कभी इस पर ध्यान दिया ? जब तुम वास्तव में हंसते हो, तो उन थोड़े से क्षणों के लिए तुम एक गहन ध्यानपूर्ण अवस्था में होते हो । विचार प्रक्रिया रुक जाती है। हंसने के साथ-साथ विचार करना असंभव है। वे दोनों बातें बिलकुल विपरीत हैं : या तो तुम हंस सकते हो, या विचार ही कर सकते हो। यदि तुम वास्तव में हंसो तो
हंसना
विचार रुक जाता है। यदि तुम अभी भी विचार कर रहे हो तो तुम्हारा हंसना थोथा और कमज़ोर होगा। वह हंसी अपंग होगी।
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कुछ भी ध्यान बन सकता है
ध्यान
जब तुम वास्तव में हंसते हो, तो अचानक मन विलीन हो जाता है। जहां तक मैं जानता हूं, नाचना और हंसना सर्वोत्तम, स्वाभाविक व सुगम द्वार हैं। यदि सच में ही तुम नाचो, तो सोच-विचार रुक जाता है। तुम नाचते जाते हो, घूमते
जाते हो, और एक भंवर बन जाते हो - सब सीमाएं, सब विभाजन समाप्त हो जाते हैं । तुम्हें इतना भी पता नहीं रहता कि कहां तुम्हारा शरीर समाप्त होता है और कहां अस्तित्व शुरू होता है। तुम अस्तित्व में पिघल जाते हो और अस्तित्व तुममें पिघल आता है; सीमाएं एक-दूसरे में प्रवाहित हो जाती हैं। और यदि तुम सच ही नाच रहे हो — उसे नियंत्रित नहीं कर रहे
बल्कि उसे स्वयं को नियंत्रित कर लेने दे रहे हो, स्वयं को वशीभूत कर लेने दे रहे हो– यदि तुम नृत्य से वशीभूत हो जाओ, तो सोच-विचार रुक जाता है।
हंसने के साथ भी ऐसा ही होता है। यदि तुम हंसी से आविष्ट और आच्छादित हो जाओ तो सोच-विचार रुक जाता है।
निर्विचार की दशा के लिए हंसना एक सुंदर भूमिका बन सकती है। 3