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एक आंतरिक आनंदोन्माद का आविर्भाव होता है।
दौड़ाक कई बार संयोग से चौथे के, तुरी के अनुभव से गुजर जाते हैं, यद्यपि वे उसे चूक जाएंगे - वे सोचेंगे कि शायद दौड़ने के कारण ही उन्होंने इस क्षण का आनंद लिया कि प्यारा दिन था, शरीर स्वस्थ था और संसार सुंदर, और यह अनुभव एक भावदशा मात्र थी। वे उसकी ओर कोई ध्यान नहीं देते - परंतु वे ध्यान दें, तो मेरी अपनी समझ है कि एक दौड़ाक किसी अन्य व्यक्ति की अपेक्षा अधिक सरलता से ध्यान के करीब आ सकता है।
'जॉगिंग' ( लयबद्ध धीरे-धीरे दौड़ना) अपूर्व रूप से सहयोगी हो सकती है, तैरना बहुत सहयोगी हो सकता है। इन सब चीजों को ध्यान में रूपांतरित कर लेना है।
ध्यान की पुरानी धारणाओं को छोड़ दो— कि किसी वृक्ष के नीचे योग मुद्रा में बैठना ही ध्यान है। वह तो बहुत से उपायों में से एक उपाय है, और हो सकता है वह कुछ लोगों के लिए उपयुक्त हो, लेकिन
ध्यान की विधियां
सबके लिए उपयुक्त नहीं है। एक छोटे बच्चे के लिए यह ध्यान नहीं, उत्पीड़न है। एक युवा व्यक्ति जो जीवंत और स्पंदित है, उसके लिए यह दमन होगा, ध्यान नहीं ।
सुबह सड़क पर दौड़ना शुरू करो। आधा मील से शुरू करो और फिर एक मील करो और अंततः कम से कम तीन मील तक आ जाओ। दौड़ते समय पूरे शरीर का उपयोग करो; ऐसे मत दौड़ो जैसे कसे कपड़े पहने हुए हों। छोटे बच्चे की तरह दौड़ो, पूरे शरीर का — हाथों और पैरों का — उपयोग करो और दौड़ो पेट से गहरी श्वास लो। फिर किसी वृक्ष के नीचे बैठ जाओ, विश्राम करो, पसीना बहने दो और शीतल हवा लगने दो; शांत अनुभव करो । यह बहुत गहन रूप से सहयोगी होगा ।
कभी-कभी बिना जूते-चप्पल पहने नंगे पांव जमीन पर खड़े हो जाओ और शीतलता को, कोमलता को, उष्मा को महसूस करो। उस क्षण में पृथ्वी जो कुछ
भी देने को तैयार है, उसे अनुभव करो और अपने में बहने दो। और अपनी ऊर्जा को पृथ्वी में बहने दो। पृथ्वी के साथ जुड़ जाओ ।
यदि तुम पृथ्वी से जुड़ गए, तो जीवन से जुड़ गए। यदि तुम पृथ्वी से जुड़ गए, अपने शरीर से जुड़ गए। यदि तुम पृथ्वी से जुड़ गए, तो बहुत संवेदनशील और केंद्रस्थ हो जाओगे और यही तो चाहिए। दौड़ने में कभी भी विशेषज्ञ मत बनना; नौसिखिए ही बने रहना ताकि सजगता रखी जा सके। जब कभी तुम्हें लगे कि दौड़ना यंत्रवत हो गया है, तो उसे छोड़ दो; फिर तैर कर देखो । यदि वह भी यंत्रवत हो जाए,
तो नृत्य को लो। यह बात याद रखने की है कि कृत्य मात्र एक परिस्थिति है कि जागरण पैदा हो सके। जब तक वह जागरण निर्मित करे तब तक ठीक है। जब वह जागरण पैदा करना बंद कर दे तो किसी काम का न रहा; किसी और कृत्य को पकड़ो जहां तुम्हें फिर से सजग होना पड़े। किसी भी कृत्य को यंत्रवत मत होने दो। 2
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