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________________ कुछ भी ध्यान बन सकता है अब तुम गति में होते हो तो सजग गरह पाना स्वाभाविक और सरल होता है। जब तुम शांत बैठे होते हो तो स्वाभाविक है कि सो जाओ। जब तुम अपने बिस्तर पर लेटे होते हो तो सजग रह पाना बहुत कठिन हो जाता है क्योंकि पूरी परिस्थिति तुम्हें सोने में मदद करती है। लेकिन सक्रियता में स्वभावतः तुम सो नहीं सकते, तुम अधिक सजग होकर कार्य करते हो। समस्या एक यही है कि कृत्य यांत्रिक बन सकता है। अपने शरीर, मन और आत्मा को पिघला कर एक करना सीखो। ऐसे उपाय खोजो कि तुम एक इकाई की भांति कार्य कर सको। दौड़ने वालों के साथ कई बार दौड़ना, जॉगिंग और तैरना ऐसा होता है। शायद तुमने सोचा भी न हो अधिकाधिक एक नए प्रकार का ध्यान सुंदर रूप से गति कर रहा हो; ताजी हवा, कि दौड़ना भी ध्यान हो सकता है, लेकिन बनता जा रहा है। जब दौड़ रहे हों तो ऐसा रात के अंधकार से गुजर कर जन्मा नया दौड़ने वालों को कई बार ध्यान के अपर्व हो सकता है। संसार-जैसे हर चीज गीत गाती अनुभव हुए हैं। और वे चकित हए, यदि तुम कभी एक दौड़ाक रहे होओ, हो-तुम बहुत जीवंत अनुभव करते क्योंकि इसकी तो वे खोज भी नहीं कर रहे यदि तुमने सुबह-सुबह दौड़ने का आनंद हो...एक क्षण आता है जब दौड़ने वाला थे-कौन सोचता है कि कोई दौड़ने वाला लिया हो जब हवा ताजी और युवा हो और विलीन हो जाता है, और बस दौड़ना ही परमात्मा का अनुभव कर लेगा? परंतु सारा विश्व नींद से लौटता हो, जागता बचता है। शरीर, मन और आत्मा ऐसा हुआ है। और अब तो दौड़ना हो-तुम दौड़ रहे होओ और तुम्हारा शरीर एक-साथ कार्य करने लगते हैं; अचानक
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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