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ध्यान की विधियां
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सामने यह चुनाव आ गयाः यदि तुम पीड़ा के नहीं होता। यदि सच में ही तुम और को मत छुओ, कोई नुकसान न स्वाभाविक होना चाहते हो तो फिर तुम्हें पुनरुज्जीवित होना चाहते हो तो यह पहुंचाओ। तुम्हारे माता-पिता का प्रेम नहीं मिलेगा। जोखिम उठा लो। इन आठ दिनों में मैं तुम्हें वापस उस बिंदु
दूसरा चरणः पर फेंक देना चाहता हूं जहां तुम स्वाभाविक होने के विपरीत “अच्छे" होने
दूसरे एक घंटे के लिए बस मौन बैठ शुरू हो गए। आनंदपूर्ण हो जाओ ताकि बॉर्न अगेन के लिए ओशो का जाओ। तुम अधिक ताजे व अधिक सरल अपना बचपन फिर से पा सको। यह कठिन मार्गदर्शन इस प्रकार है:
हो जाओगे, और ध्यान तुम्हारे लिए आसान तो होगा, क्योंकि तुम्हें अपने मुखौटे, अपने
हो जाएगा। चेहरे सब उतार कर रखने होंगे, तुम्हें अपने पहला चरण: व्यक्तित्व को एक किनारे पर छोड़ना होगा।
सात दिन के लिए दो घंटे प्रतिदिन: लेकिन याद रखो, मूल तत्व तभी स्वयं को, पहले एक घंटे के लिए बच्चे जैसा प्रकट कर सकता है जब तुम्हारा व्यक्तित्व व्यवहार करो, अपने बचपन में प्रवेश कर यह निर्णय कर लो कि इन दिनों तुम उतने वहां न हो, क्योंकि तुम्हारा व्यक्तित्व एक जाओ। जो भी तुम करना चाहते थे, ही अबोध रहोगे जितने तुम पैदा होते समय कारागृह बन गया है। उसे एक ओर हटा करो-नाचना, गाना, उछलना, चीखना, थे-बिलकुल नवजात शिशु जैसे, जो न दो! यह पीड़ादायी होगा, लेकिन यह पीड़ा रोना-कुछ भी, किसी भी मुद्रा में। दूसरे कुछ जानता है, न कुछ पूछता है, न कुछ झेलने जैसी है क्योंकि उससे तुम्हारा लोगों को स्पर्श करने को छोड़कर और चर्चा करता है न तर्क। यदि तुम छोटे बच्चे पुनर्जन्म होगा। और कोई भी जन्म बिना कुछ भी प्रतिबंधित नहीं है। ग्रुप में किसी हो सको, तो बहुत कुछ संभव है। जो
असंभव लगता है वह भी संभव है।