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________________ 57 नृत्य : एक ध्यान नृत्यः एक ध्यान नृत्य में खो जाओ जाओ, ही ह को, अहंकार के केंद्र को ध्यान है। इतनी गहनता से नाचो कि तुम यह बिलकुल भूल जाओ कि 'तुम' नाच रहे हो और यह महसूस होने लगे कि तुम नृत्य ही हो । यह दो का भेद मिट जाना जाना चाहिए; फिर वह ध्यान बन जाता है। यदि भेद बना रहे, तो फिर वह एक व्यायाम ही है: अच्छा है, स्वास्थ्यकर है, लेकिन उसे आध्यात्मिक नहीं कहा जा सकता। वह बस एक साधारण नृत्य ही हुआ । नृत्य स्वयं में अच्छा है— जहां तक चला है, अच्छा ही है। उसके बाद तुम ताजे और युवा महसूस करोगे । परंतु वह अभी ध्यान नहीं बना। नर्तक को बिदा देते रहना होगा, जब तक कि केवल नृत्य ही न बचे। तो क्या करना है ? नृत्य में समग्र होओ, क्योंकि नर्तक नृत्य भेद तभी तक रह सकता है जब तक तुम उसमें समग्र नहीं हो। यदि तुम एक ओर खड़े रहकर अपने नृत्य को देखते रहते हो, तो भेद बना रहेगा : तुम नर्तक हो और तुम नृत्य कर रहे हो। फिर नृत्य एक कृत्य मात्र होता है, जो तुम कर रहे हो; वह तुम्हारा प्राण नहीं है। तो पूर्णतया उसमें संलग्न हो जाओ, लीन हो जाओ। एक ओर न खड़े रहो, एक दर्शक मत बने रहो । सम्मिलित होओ! ।
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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