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________________ जाने देना । तुम्हारा मन उसमें हस्तक्षेप न करे, नियंत्रक न बने। जैसे एक अनाज से भरी थैली लुड़क जाती है, ठीक वैसे ही लुड़क जाओ। प्रत्येक चरण ढोल की थाप के साथ प्रारंभ होगा । 3 निर्देश इस विधि को पहले सात दिन के लिए करें, इतना समय इसके प्रभावों को महसूस करने के लिए पर्याप्त होगा । लगभग चालीस मिनट जिबरिश को दें, फिर चालीस मिनट बस देखें और फिर लेट-गो, लेकिन आप चाहें तो दोनों चरणों को बीस-बीस मिनट के लिए और बढ़ा सकते हैं। पहला चरण: जिबरिश अथवा सजग विक्षिप्तता बैठ जाएं या खड़े हो जाएं, अपनी आंखें बंद कर लें और अनर्गल शब्दोच्चार – जिबरिश करना शुरू कर दें | जैसी चाहें ध्वनियां निकालें, लेकिन उस भाषा का और उन शब्दों का उपयोग न करें जो आप जानते हैं। आपके भीतर, जिस चीज को भी अभिव्यक्ति की जरूरत हो उसे अभिव्यक्त हो जाने दें। हर चीज बाहर निकाल दें, पूरी तरह पागल हो जाएं। होशपूर्वक पागल हो जाएं। मन ध्यान की विधियां शब्दों की भाषा में सोचता है । जिबरिश इस सतत शब्दप्रवाह के ढांचे को तोड़ने में मदद करती है। बिना अपने विचारों का दमन किए, जिबरिश के माध्यम से आप उन्हें बाहर फेंक सकते हैं। प्रत्येक चीज की अनुमति है : गाएं, रोएं, चीखें, चिल्लाएं, गुनगुनाएं, बड़बड़ाएं। आपका शरीर जो करना चाहे उसे करने दें: उछलें, कूदें, उठे-बैठें, हाथ-पैर फेंकें, कुछ भी करें। बीच में अंतराल न आने दें। यदि आपको बोलने के लिए ध्वनियां न मिलें, तो सिर्फ ला- ला- ला- ला कहें, लेकिन चुप न रहें। यदि आप यह ध्यान अन्य लोगों के साथ कर रहे हैं, तो न उनसे किसी प्रकार का संबंध रखें, न ही उन्हें बाधा दें। जो आपको हो रहा है उसी को जीएं, और दूसरे क्या कर रहे हैं, इसकी फिक्र न करें। दूसरा चरण: साक्षी (विटनेसिंग) जिबरिश के बाद, पूरी तरह शांत और मौन और शिथिल बैठ जाएं, अपनी ऊर्जा को अंदर इकट्ठी करें, विचारों को दूर और दूर होते जाने दें, स्वयं को अपने केंद्र पर गहन मौन और शांति में उतर जाने दें। आप जमीन पर बैठ सकते हैं या चाहें तो कुर्सी पर भी, परंतु सिर और रीढ़ सीधी होनी चाहिए, शरीर शिथिल हो, आंखें बंद हों और श्वास सहज व सामान्य हो । सजग रहें, और समग्ररूपेण वर्तमान क्षण में जीएं। शिखर पर बैठे द्रष्टा की भांति हो रहें; जो भी गुजरे उसके द्रष्टा मात्र रहें। विचार तो भविष्य या अतीत में जाने की कोशिश करेंगे। बस उन्हें थोड़ी दूरी से देखते रहें- कोई निर्णय न लें; विचारों में उलझना नहीं है। बस वर्तमान में स्थिर होना है, साक्षी बने हुए । 'साक्षी की प्रक्रिया ही ध्यान है, आप किसका अवलोकन कर रहे हैं यह महत्वपूर्ण नहीं है। स्मरण रहे कि जो भी विचार, भावनाएं, स्मृतियां, शारीरिक संवेग या निर्णय आएं उनमें खोना नहीं है, उनसे तादात्म्य नहीं बनाना है। तीसरा चरण : लेट गो जिबरिश है : सक्रिय-मन से मुक्ति के लिए; मौन है: निष्क्रिय मन से मुक्ति के लिए; और लेट-गो: समयातीत में प्रवेश के लिए है । साक्षी के बाद, अपनी देह को बिना किसी प्रयत्न अथवा नियंत्रण के जमीन पर गिर जाने दें। लेटे हुए साक्षीभाव जारी रखें; सजग हों कि आप न तो देह हैं और नमन, कि आप दोनों से भिन्न कुछ और हैं। जैसे-जैसे आप गहरे और गहरे भीतर उतरते जाएंगे, धीरे-धीरे आप अपने केंद्र पर पहुंच जाएंगे। 2 54
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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