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________________ नो-माइंड ध्यान 27-मन का अर्थ है-निर्विचार चैतन्य। और मन का अर्थ है-निर्विचार चैतन्य नहीं, वरन जिबरिश (अनर्गल प्रलाप)। और जब मैं तुमसे जिबरिश करने को कहता हूं, तो मैं इतना ही कह रहा हूं कि मन और उसके सब उपद्रवों को बाहर निकाल फेंको, ताकि पीछे तुम बच रहो—विशुद्ध, निर्मल, पारदर्शी, द्रष्टा। नो-माइंड मेडिटेशन मेरे प्रिय आत्मन, मैं तुम्हें एक है-जिबरिश! इसे हटाकर एक तरफ रख कचरा उलीच डालो, और वह अंतआकाश नया ध्यान दे रहा हूं। इसमें तीन दो, तो तुम्हें अपनी आत्मा का स्वाद मिल निर्मित करो, जिसमें बुद्ध प्रगट होते हैं। चरण हैं। जाए। । दूसरे चरण में: तूफान जा चुका, जिबरिश का प्रयोग करो, होशपूर्वक चक्रवात गया, और तुम्हें भी अपने साथ पहला चरण है: जिबरिश। 'जिबरिश' पागल हो जाओ। परिपूर्ण सजगता के बहा ले गया। उसका स्थान, नितांत मौन शब्द, एक सूफी संत जब्बार के नाम से साथ, पूरी तरह विक्षिप्त हो जाओ, ताकि और थिरता में, बुद्ध ने ले लिया। अब तुम आता है। जब्बार कभी किसी भाषा का यह जो तूफान खड़ा हो गया है, तुम इस केवल साक्षी हो-शरीर के, मन के, और उपयोग नहीं करता था। वह सिर्फ अनर्गल बवंडर के, इस चक्रवात के केंद्र बन जाओ। जो भी घट रहा है उस सबके द्रष्टा मात्र हो। और अंट-शंट ही बोलता था। फिर भी जो भी आता है, उसे आने दो; बिना यह तीसरे चरण में: मैं कहूंगा-“लेट उसके हजारों शिष्य थे। वह कहता था कि फिक्र किए कि वह तर्कसंगत है या गो"। तब तुम अपनी देह को शिथिल छोड़ तुम्हारा मन कुछ और नहीं, बस ऐसा ही असंगत, सार्थक है या व्यर्थ। मन का सारा देना, और उसे बिना किसी प्रयास के गिर
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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