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"लेट- गो" : हास्य चरण के अंत में कुछ मिनट के लिए आंखें बंद कर लें और स्थिर बैठ जाएं। शरीर स्थिर रखें जैसे कि कोई मूर्ति; सारी ऊर्जा को अंदर इकट्ठा होने दें। फिर अपने शरीर को पूरी तरह शिथिल छोड़ दें और बिना किसी नियंत्रण या प्रयास के इसे पीछे गिर जाने दें। थोड़ी देर बाद पुनः बैठ जायें और पंद्रह मिनट शांत, सजग बैठे रहें।
2. रुदन के लिए निर्देश
हास्य के चुक जाने के बाद तुम स्वयं आंसू और संताप की बाढ़ से आपूरित होता हुआ पाओगे। लेकिन वह भी बहुत निर्धार करने वाली घटना होगी। जन्मों-जन्मों के दुख और दर्द विदा हो जायेंगे। यदि तुम इन दो परतों से छुटकारा पालो तो तुमने स्वयं को पा लिया।
दूसरे सप्ताह, धीमे-धीमे “या-बू" कहने से शुरू करके 45 मिनट के लिए रोना प्रारंभ कर दें। आप चाहें तो अपने दुख में उतरने के लिए कमरे को थोड़ा अंधेरा कर ले सकते हैं। आप बैठ सकते हैं या ले सकते हैं। अपनी आंखें बंद कर लें और उन भावों में गहनता से डूब जायें जो आपके रोने में सहायक
अपनी पूरी गहराई और समग्रता से एं जिससे हृदय निर्मल और निर्भर हो जाए। अनुभव करें कि आपके छिपे हुए
ध्यान की विधियां
घावों और पीड़ाओं का बांध अचानक टूट गया है— आंसुओं की बाढ़ आ जाने दें। यदि आपको कोई अवरोध महसूस हो या थोड़ी देर रोने के बाद नींद आने लगे तो जिबरिश शुरू कर दें, थोड़ा शरीर को आगे-पीछे हिलाएं-डुलाएं, या कुछ बार “या - बू” कहें। आंसू तो मौजूद ही हैं, बस उन्हें रोकें मत ।
"लेट- गो" : प्रतिदिन सदन के चरण के अंत में कुछ मिनट पूर्णतया स्थिर होकर बैठें और फिर विश्रांति में धीरे से पीछे गिर जाएं। रुदन के इस सप्ताह के दौरान उस हर परिस्थिति के लिए खुले रहें जिससे आंसू आते हों। अपने को पूरी तरह खुला और ग्रहणशील बनाए रखें।
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3. 'शिखर पर बैठे द्रष्टा' के लिए निर्देश
तीसरे सप्ताह आपके लिए जितना समय सुविधाजनक हो शांत और मौन बैठें और फिर धीमे, मधुर संगीत के साथ नृत्य करें।
आप फर्श पर बैठ सकते हैं या कुर्सी का उपयोग कर सकते हैं। अपना सिर एवं रीढ़ सीधी रखें, आखें बंद रखें और श्वास सामान्य रहने दें।
तनावरहित और सजग, पर्वत शिखर पर खड़े साक्षी हो जाएं, जो भी गुजरे
उसके प्रति साक्षी हो जाएं। देखने की यह विधि है, जो कि ध्यान है, आप क्या देख रहे हैं वह महत्वपूर्ण नहीं है। स्मरण रखें कि विचार, भाव, शारीरिक संवेग, निर्णय आदि जो भी आएं उसमें खो नहीं जाना है या उनके साथ तादात्म्य नहीं जोड़ लेना है।
कुछ देर शांत, मौन बैठने के बाद अपनी पसंद का कोई हल्का संगीत बजायें और नृत्य करें। शरीर को स्वतः गति करने दें और अपना साक्षीभाव कायम रखें, संगीत में खो न जाएं। 2
4. कुछ सहायक संकेत- बिंदु
पूरे इक्कीस दिनों की अवधि के दौरान अन्य रेचक ध्यान जैसे सक्रिय ध्यान या कुंडलिनी ध्यान आदि न करना बेहतर है।
यदि आप यह ध्यान अन्य मित्रों के साथ कर रहे हैं तो ध्यान के दौरान आपस में बातचीत न करें।
• हास्य या रुदन के चरणों के दौरान बहुत से लोग क्रोध की पर्त से गुजरते हैं। लेकिन वहां रुक जाने की जरूरत नहीं है। इसे जिबरिश या शारीरिक हलन चलन द्वारा निकाल दें और फिर हास्य या रुदन पर लौट आएं।
• अपनी हंसी का उत्सव मनाएं, अपने आंसुओं का उत्सव मनाएं, अपने मौन साक्षी का उत्सव मनाएं।
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