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________________ जागरण की दो शक्तिशाली विधियां तब विरोधाभास को आत्मसात कर आधारित हो। एक बार तुम्हारी ऊर्जा अपने दोनों हाथ पूरी तरह से तान कर लिया गया।... प्रवाहमान हो जाए फिर वह शरीर को भी ऊपर उठाएं, कोहनियां लचीली बनी और यही है जो मैं कह रहा हूं। एक गति देने लगेगी। इन शारीरिक रहें। दोनों हाथ ऊपर उठाए हुए 'सक्रिय-ध्यान' एक विरोधाभास है। गतियों को होने दें; इन्हें और अधिक हू!...हू!...हू! मंत्र का जोरों से उच्चार 'सक्रिय' का अर्थ है : प्रयास, बहुत प्रयास, ऊर्जा निर्मित करने में सहायक होने दें। करते हुए बारबार ऊपर उछलें, नीचे पूर्ण प्रयास। और ध्यान का अर्थ है : मौन, अपने हाथों और शरीर को प्राकृतिक रूप आएं। 'हू का उच्चार अधिकतम गहरा हो प्रयासशून्यता, अक्रिया। तुम इस से गति करने दें ताकि वे ऊर्जा के उठने में और वह आपके नाभि से उठना चाहिए। ध्यान-विधि को द्वन्द्वात्मक-विधि कह सहयोगी बन सकें। ऊर्जा को बढ़ता हुआ हर बार जब आप नीचे आते हैं तब पैर के सकते हो। अनुभव करें। पहले चरण में अपने को तलवे और एड़ी को धीमे से जमीन को ढीला मत छोड़ें और अभ्यास को जरा भी छुने दें और उसी समय 'ह' की तीव्र ध्वनि धीमा मत होने दें। को काम-केंद्र पर गहराई से चोट करने सक्रिय-ध्यान दें। इस चरण में अपनी पूरी शक्ति (डाइनैमिक मेडिटेशन) दूसरा चरण: दस मिनट लगाएं; कोई शक्ति पीछे शेष न बचने के लिए निर्देश अपने शरीर का अनुगमन करें। अपने प्रथम चरण: दस मिनट शरीर को स्वतंत्रता दें ताकि वह जो कुछ चाहे अभिव्यक्त कर सके...विस्फोट हो चौथा चरण पंद्रह मिनट नाक से तेजी से श्वास भीतर लें जाए...अपने शरीर को आविष्ट हो जाने " और बाहर छोड़ें। श्वास भीतर दें। जो कुछ भी भीतर से बाहर फेंकना हो रुक जाएं। जहां भी हैं, जैसे भी हैं लेने और बाहर छोड़ने-दोनों पर जोर उसके प्रति शिथिल हो जाएं। पूरी तरह से बिलकुल जम जाएं। शरीर को जरा भी लगाएं और उन्हें अराजक बना रहने दें। पागल हो जाएं...गाएं, चीखें, हंसें, व्यवस्थित न करें। जग-सी खांसी ma श्वास फेफड़ों में गहराई से जानी चाहिए। चिल्लाएं, रोएं, कूदें, कंपें, नाचें, भी गति, कोई भी हलन-चलन ऊर्जा को श्वास लेने और छोड़ने में तेजी लाएं, हाथ-पैर चलाएं और शरीर को सब क्षीण करेगी और अब तक की मेहनत को लेकिन निश्चित रहे कि श्वास गहरी बनी दिशाओं में गति करने दें। शुरू में खराब करेगी। तुम्हें जो भी घटित हो रहा रहे। इसे यथाशक्ति अपनी अधिकतम थोड़ा-सा अभिनय प्रक्रियाओं को प्रवाह है उसके साक्षी बनो। समग्रता से करें बिना अपने शरीर को देने में सहायक होता है। जो घटित हो औप नि रहा है उसमें अपने मन को दखल डालने तम्हारे कंधे और तम्हारा गला शिथिल न दे। स्मरण रखे कि आप अपने शरीर पांचवां चरण:पंदर मिनट अवस्था में हैं। श्वास जारी रखें जब तक के साथ समग्रता से गतिमय हैं। आप श्वास ही श्वास न हो जाएं; श्वास उत्सव मनाएं। संगीत और नृत्य के को अराजक और अस्तव्यस्त बना रहने तीसरा चरण: दस मिनट साथ अपने अंतस के अहोभाव को बाहर दें। अर्थात् श्वास न लयबद्ध हो और न अभिव्यक्त करें। फलित हई जीवंतता को ही किसी पूर्वनिर्धारित नियम पर कंधे और गले को ढीला रखते हुए दिन भर की अपनी चर्या में फैलने दें।
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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