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ध्यान की विधियां
बदल जाएगी।
भावावेगों को विसर्जित नहीं कर सकते। स्वयं को नया जन्म देना
_इसलिए मैं श्वास से शुरू करता हूं और और वे भावावेग अब तो शरीर तक में
इस ध्यान विधि के पहले चरण में दस फैल गए हैं। सहायक संकेत
मिनट के अराजक श्वास-प्रश्वास के तुम शरीर और मन-ऐसे दो नहीं हो;
लिए कहता हूं। अराजक श्वास से मेरा तुम देह-मन, मनो-शारीरिक हो। तुम एक पक्रिय ध्यान की मेरी पद्धति श्वास मतलब है-गहरी, तेज और प्रबल साथ दोनों हो। इसलिए जो भी तुम्हारे शरीर
सके प्रयोग से शुरू होती है. क्योंकि श्वास-प्रश्वास–बिना किसी लयबद्धता के साथ किया जाता है वह तुम्हारे मन तक श्वास की गहरी जड़ें तुम्हारे अंतस केंद्र में के–बस श्वास भीतर खींचना और पहुंच जाता है और मन के साथ जो कुछ हैं। शायद तुमने इस बात पर ध्यान न दिया बाहर फेंकना, भीतर खींचना और बाहर किया जाता है वह शरीर तक पहुंच जाता हो, लेकिन यदि तुम अपनी श्वास को फेंकना-अधिक से अधिक गहरी, है। शरीर और मन एक ही सत्ता के दो छोर बदलते हो, तो तुम कई चीजें भीतर बदल प्रबल और सप्राण। भीतर खींचें-बाहर हैं। सकते हो। यदि तुम सावधानी से अपनी फेंकें।
दस मिनट के लिए किया गया अराजक श्वास का निरीक्षण करो तो तुम पाओगे कि यह अस्तव्यस्त श्वास-प्रश्वास तुम्हारे श्वसन विस्मयकारी है। लेकिन उसे जब तुम क्रोधित हो तब तुम्हारे श्वास की भीतर की दमन की व्यवस्था में अराजक होना चाहिए। यह कोई प्राणायाम, एक खास लय है। जब तुम प्रेम में होते हो . उथल-पुथल पैदा करने के लिए है। जो भी योग की कोई श्वसन प्रक्रिया नहीं है। यह तब एक बिलकुल ही भिन्न लय तुम्हारे तुम हो वह तुम एक खास प्रकार के श्वसन श्वास-प्रश्वास के माध्यम से मात्र एक श्वास की होती है। जब तुम विश्राम में होते के ढांचे के कारण हो। एक बच्चा खास अराजकता पैदा करना है। और अनेक हो तब भिन्न ढंग से श्वास लेते हो; जब ढंग से श्वास लेता है। यदि तुम कारणों से यह श्वसन अराजकता पैदा तुम तनाव में होते हो तब भिन्न ढंग से काम-वासना से भयभीत हो तो तुम एक करती है। श्वास लेते हो। विश्राम की अवस्था में खास ढंग से श्वास लोगे। तब तुम गहराई गहरी और तेज श्वास तुम्हें और अधिक चलने वाली श्वास की लय के साथ-साथ से श्वास नहीं ले सकते क्योंकि प्रत्येक ऑक्सीजन देती है। शरीर में अधिक तुम क्रोधित नहीं हो सकते। यह गहरी श्वास तुम्हारे काम-केंद्र पर चोट ऑक्सीजन आने से तुम अधिक जीवंत असंभव है।
करती है। यदि तुम भयभीत हो तो तुम और आदिम, पशुवत सरल हो जाते हो। - जब तुम कामोन्माद से भर उठते हो तब गहरी श्वास नहीं ले सकते। भय में श्वास पशु जीवंत होते हैं और मनुष्य आधा-मृत तुम्हारी श्वास बदल जाती है। यदि तुम उथली हो जाती है।
आधा-जीवित है। तुम्हें पुनः पशुवत श्वास को बदलने न दो तो तुम्हारी यह अराजक श्वास-प्रश्वास तुम्हारे जीवंत और सरल बना देना होगा। केवल कामोत्तेजना स्वतः ही शांत हो जाएगी। अतीत के समस्त ढांचों को तोड़ने के लिए तभी कोई उच्चतर आयाम तुममें इसका अर्थ है कि तुम्हारे मन की अवस्था है। तुमने अपने आप को जैसा निर्मित विकसित हो सकता है। के साथ श्वास की लय का गहरा संबंध किया है, उसे यह अराजक श्वास नष्ट यदि तुम केवल आधे जिंदा हो, तब है। यदि तुम अपनी श्वास बदल लो तो कर देने वाली है। यह अस्तव्यस्त तुम्हारे साथ कुछ भी नहीं किया जा • तुम अपने मन की अवस्था को भी बदल श्वास-प्रश्वास तुम्हारे भीतर अराजकता सकता। तो यह अराजक श्वास-प्रश्वास सकते हो। या यदि तुम अपने मन की पैदा करती है क्योंकि बिना अराजकता पैदा तुम्हें पुनः पशुवत बना देगी: जीवंत, अवस्था को बदल लो तो श्वास अपने से हुए तुम अपने दमित मनोवेगों और स्पंदित, प्राणवान-खून में ज्यादा