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ध्यान का विज्ञान
है; उसमें एक आवाज होती है। वह तो मनाते हो, और मृत्यु का भी उत्सव जब तुम्हारे भीतर सभी कुछ शांत हो जाता पर्वतों की सरिता जैसा है; आवाज पैदा मनाते हो। 19
है। वही क्षण है जब वे तरंगें गहन निद्रा होती है। लेकिन पर्वतों में कोई भी नदी
वाली तरंगें होती हैं। तुम्हें इस गहन निद्रा बहुत गहरी नहीं हो सकती; सदा उथली
का बोध नहीं होगा, परंतु दस मिनट के होती है। जब नदी मैदानों में पहुंचती है तो
बाद जब तुम्हें यंत्र से हटाया जाएगा तो गहरी हो जाती है, लेकिन फिर आवाज
तुम उसके प्रभाव देखोगेः कि तुम स्थिर, नहीं होती। नदी बहती चलती है जैसे बह
निश्चल और शांत हो गए हो; कोई चिंता ही न रही हो। दुख में एक गहराई है। TIसार भर में बहुत से यंत्र विकसित नहीं रही, कोई तनाव नहीं रहा; जीवन ___ झंझट क्यों खड़ी करनी? जब सुखी हो, तकिए जा रहे हैं, जो दावा करते हैं अधिक प्रफुल्ल और आनंदमय लगने तो सुखी होओ, उसका आनंद लो। उससे कि वे तुम्हें ध्यान दे सकते हैं; तुम्हें बस लगा है। व्यक्ति को ऐसा लगता है जैसे तादात्म्य मत बनाओ। जब मैं कहता हूं: इयरफोन लगाकर विश्राम करना है, और उसने कोई अंतस्नान कर लिया हो। सुखी होओ, तो मेरा अर्थ है: उसका दस मिनट के भीतर तुम ध्यान की अवस्था तुम्हारा सारा अंतस शांत और शीतल हो आनंद लो। उसे एक जलवायु बन जाने में पहुंच जाओगे।
जाता है। यंत्रों के साथ चीजें बहुत दो, जो बदल जाएगी। सुबह दोपहर में यह नितांत मूढ़ता है, परंतु तकनीकी सुनिश्चित हो जाती हैं क्योंकि वे तुम्हारे बदल जाती है, दोपहर शाम में, और फिर लोगों के मन में यह विचार क्यों आया, किसी कृत्य पर निर्भर नहीं करतीं। यह ऐसे रात आ जाती है। सुख को अपने चारों इसके पीछे भी एक कारण है। जाग्रत ही है जैसे संगीत सुननाः तुम शांत और ओर एक वातावरण बन जाने दो। उसका अवस्था में मन एक विशेष आवृत्ति की लयबद्ध अनुभव करते हो। वे यंत्र तुम्हें आनंद लो, और जब उदासी आए तो तरंग में कार्य करता है। जब वह स्वप्न में तीसरी अवस्था-गहन निद्रा, स्वप्नरहित उसका भी आनंद लो। कुछ भी हो, मैं तुम्हें होता है तो एक भिन्न तरंग-लंबान में कार्य निद्रा तक ले जाएंगे। उसका आनंद लेना सिखाता हूं। शांत बैठो करता है। लेकिन इनमें से कोई भी ध्यान लेकिन यदि तुम सोचो कि यही ध्यान और उदासी का आनंद लो, और अचानक नहीं है।
है, तो तुम गलत हो। मैं कहूंगा, यह एक उदासी उदासी नहीं रहती; वह स्वयं में हजारों वर्षों से हमने ध्यान को तुरीय अच्छा अनुभव है, और जब तुम गहन एक सुंदर, शांत और मौन क्षण बन जाती कहा है- "चौथा"। जब तुम गहनतम निद्रा के क्षण में पहुंचो, और जब मन है। उसमें कोई गलती नहीं है।
निद्रा के पार चले जाते हो और फिर भी अपनी तरंगें बदलना शुरू करे, तो यदि और फिर परम कीमिया घटित होती है, जाग्रत होते हो, तो वह जागरण ध्यान है। शुरू से ही तुम जाग्रत रह सको...तुम्हें वह बिंदु आता है जहां तुम अचानक __वह कोई अनुभव नहीं है; वह तो तुम्हीं अधिक सचेत, जागरूक और सजग होना अनुभव करते हो कि तुम दोनों ही नहीं हो, तुम्हारा होना है।
होगा कि क्या हो रहा है, और तुम पाओगे हो-न सुख, न दुख। तुम द्रष्टा होः तुम लेकिन सही हाथों में ये उच्च तकनीक कि मन धीरे-धीरे सोता जा रहा है। और शिखरों को भी देखते हो और घाटियों को से बने यंत्र उपयोगी हो सकते हैं। वे तुम्हारे यदि तुम मन को सोते हुए देख सको...जो भी; परंतु तुम दोनों ही नहीं हो।
मस्तिष्क में ऐसी तरंगें पैदा करने में मदद दे मन को सोते हुए देख रहा है वह तुम्हारी एक बार यह दशा उपलब्ध हो जाए, तो सकते हैं कि तुम विश्रांत अनुभव करने स्व-सत्ता है, और वही हर प्रामाणिक तुम हर बात का उत्सव मनाते चले जा लगो, जैसे कि आधे सोए हो... विचार ध्यान का लक्ष्य है। सकते हो। फिर तुम जीवन का उत्सव बिदा होने लगते हैं और एक क्षण आता है ये यंत्र उस सजगता को पैदा नहीं कर