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________________ ध्यान का विज्ञान खिलेगा,लेकिन तुम प्रक्रिया को तेज नहीं यही कारण है कि शिक्षित लोग चालाक सजग होने में मदद करता है। ऊर्जाएं कर सकते। क्या हर चीज के लिए समय हो जाते हैं, क्योंकि वे छोटे मार्ग खोजने में विश्राम की एक अवधि से गुजर जाती हैं नहीं चाहिए? तुम कार्य तो करो, लेकिन सक्षम होते हैं। यदि तुम न्यायोचित ढंग से और सुबह ज्यादा जीवंत हो जाती हैं। परिणाम परमात्मा पर छोड़ दो। जीवन में धन कमाओ तो तुम्हारा पूरा जीवन भी ध्यान में भी ऐसा ही होगा: कुछ क्षण कुछ भी व्यर्थ नहीं जाता—विशेषतः सत्य इसमें लग सकता है। लेकिन यदि तुम के लिए तुम बिलकुल होश में होते हो, की ओर उठाए गए कदम। तस्करी से, जुए से, या किसी और ढंग शिखर पर होते हो और फिर कुछ क्षण के परंतु कई बार अधैर्य उठता है; प्यास के से-राजनेता, प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बन लिए घाटी में पहुंच जाते हो, विश्राम करते साथ ही आता है अधैर्य, पर वह बाधा है। कर-धन कमा सको तो सभी छोटे मार्ग हो। होश बिदा हो गया, तुम भूल गए। प्यास को बचा लो और अधैर्य को तुम्हें उपलब्ध होगें। शिक्षित व्यक्ति लेकिन इसमें क्या गलत है? यह तो सीधी जाने दो। चालाक हो जाता है। वह बुद्धिमान नहीं बात है। बेहोशी से फिर होश उठेगा, ताजा _अधैर्य को प्यास के साथ मिलाओ मत। बनता, बस, चालाक हो जाता है। वह होकर, युवा होकर और यह चलता रहेगा। प्यास में उत्कंठा तो होती है परंतु कोई इतना चालाक हो जाता है कि बिना कुछ यदि तुम दोनों का आनंद ले सको तो तुम संघर्ष नहीं होता; अधैर्य में संघर्ष होता है किए सब कुछ पा लेना चाहता है। तीसरे' हो जाते हो, और यह सूत्र समझने और कोई उत्कंठा नहीं होती। अभीप्सा में ___ध्यान उन्हीं लोगों को घटता है जो जैसा है: यदि तुम दोनों का आनंद ले प्रतीक्षा तो होती है परंतु कोई मांग नहीं परिणामोन्मुख नहीं होते। ध्यान सको, इसका अर्थ हुआ कि तुम दोनों ही होती; अधैर्य में मांग होती है और कोई परिणामोन्मुख न होने की दशा है। 18 नहीं हो-न होश, न बेहोशी-तुम तो प्रतीक्षा नहीं होती। प्यास में तो मौन आंसू वह हो जो दोनों का आनंद लेता है। तब होते हैं; अधैर्य में बेचैन संघर्ष होता है। -: पार का कुछ प्रवेश कर जाता है। सत्य पर आक्रमण नहीं किया जा बेहोशी का भी सम्मान करो वास्तव में, यही वास्तविक साक्षी है। सकता; वह तो समर्पण से पाया जाता है, तुम.सुख का आनंद लेते हो, उसमें क्या संघर्ष से नहीं। उसे समग्र समर्पण से जीता जब होश में हो तो होश का आनंद गलत है? जब सुख गया और तुम दुखी हो जाता है। 17 गलो. और जब बेहोश हो तो बेहोशी गए तो दुख में क्या गलत है? उसका का आनंद लो। कुछ भी गलत नहीं है, आनंद लो। एक बार तुम दुख का आनंद क्योंकि बेहोशी एक विश्राम की भांति है। लेने में सक्षम हो जाओ तो तुम दोनों ही परिणाम मत खोजो वरना होश एक तनाव हो जाता। यदि तम नहीं रहते। चौबीस घंटे जागे रहो तो तुम कितने दिन, और यह मैं तुम्हें कहता हूं: यदि तुम हंकार परिणामोन्मुख है, मन सदा सोचते हो कि, जीवित रहोगे? दुख का आनंद ले सको, तो उसका अपना जपरिणाम के लिए लालायित रहता भोजन के बिना मनुष्य तीन महीने जी सौंदर्य है। सुख थोड़ा उथला है; दुख बहुत है। मन का कर्म में कोई रस नहीं होता, सकता है; नींद के बिना तीन सप्ताह में ही गहरा है, उसमें एक गहराई है। जो मनुष्य परिणाम में ही रस होता है- "इससे मुझे वह विक्षिप्त हो जाएगा और वह आत्मघात कभी दुखी नहीं हुआ वह उथला रहेगा, क्या मिलेगा?" यदि कृत्य से गुजरे बिना का प्रयास करेगा। दिन में तुम सजग रहते सतह पर ही रहेगा। दुख अंधेरी रात की ही मन परिणाम पा सके, तो वह छोटे मार्ग हो; रात तुम विश्राम करते हो, और वह तरह बहुत गहरा है। अंधकार में एक मौन का ही चुनाव करेगा। विश्राम तुम्हें दिन में, ताजे होकर, और है, और एक उदासी भी। सुख तो छलकता 15
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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