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ध्यान का विज्ञान
चाहिए।
से शुरू होती है, वह तुम्हें अन्य रूपों में भी वह स्थायी हो जाती है। अब वह क्रोध मैं तुम्हारी विक्षिप्तता से ही शुरू करता सहयोगी होती है। वह एक रेचन बन जाती करेगा तो नहीं, लेकिन क्रोधित रहेगा। हूं, बैठने की मुद्रा से नहीं। मैं तुम्हारे है। जब तुम बस बैठ जाते हो, तो व्यथित क्षणिक घटनाओं से हमने बहुत क्रोध जमा पागलपन को चलने देता हूं। यदि तुम होते हो तुम्हारा मन तो चलना चाहता है कर लिया है। यदि क्रोध को दबाया न जाए पागल की तरह नाचो, तो उसका विपरीत और तुम बस बैठे हुए हो। हर मांसपेशी तो कोई हर समय क्रोधित नहीं रह सकता। तुम्हारे भीतर घटित होगा। तेज नृत्य में तुम्हें तन जाती है, हर स्नायु तन जाता है। तुम क्रोध तो क्षणिक है, जो आता है और चला अपने भीतर एक शांत बिंदु का पता लगना स्वयं पर ऐसा कुछ आरोपित करने का जाता है; यदि उसे अभिव्यक्त कर दिया शुरू होता है; शांत बैठने से तुम्हें प्रयास कर रहे हो जो तुम्हारे लिए जाए, तो फिर तुम क्रोधित नहीं रहते। तो विक्षिप्तता का पता लगने लगता है। सदा स्वाभाविक नहीं है। फिर तुमने स्वयं को अपने साथ, मैं बच्चों को अधिक विपरीत का ही पता चलता है।
आरोपित करने वाले और जिस पर प्रामाणिक रूप से क्रोधित होने दूंगा। पागलों की तरह, अव्यवस्थित रूप से आरोपित किया जा रहा है उसमें विभाजित क्रोधित होओ, लेकिन उसमें गहरे जाओ। नाचने में, रोने में, अराजक श्वास प्रक्रिया कर लिया। और वास्तव में जिस भाग पर उसे दबाओ मत। में मैं तुम्हें पागल होने देता हूं। फिर सतह आरोपित किया जा रहा है और जिसे निश्चित ही, समस्याएं तो आएंगी। जब के पागलपन के विपरीत तुम्हें एक ऐसे दबाया जा रहा है, वह अधिक मौलिक है। हम कहते हैं, “क्रोधित होओ," तो तुम सूक्ष्म बिंदु, अपने भीतर के एक ऐसे गहन वह दमन करने वाले भाग से अधिक किसी व्यक्ति पर क्रोधित होओगे। बिंदु का पता लगने लगता है जो शांत और प्रमुख है, और प्रमुख भाग की निश्चित ही लेकिन बच्चे को दिशा दी जा सकती स्थिर है। तुम बहुत आनंदित अनुभव जीत होगी।
है। उसे तकिया देकर कहा जा सकता है करोगे; तुम्हारे केंद्र पर एक आंतरिक मौन जिसका तुम दमन कर रहे हो, उसे तो कि “तकिये पर क्रोध कर लो। तकिये पर, होगा। लेकिन यदि तुम सीधे थिर बैठते हो वास्तव में बाहर फेंकना है, दबाना नहीं है। हिंसा कर लो।" आरंभ से ही बच्चे को तो भीतर विक्षिप्तता ही होगी। बाहर से तुम क्योंकि तुम लगातार उसे दबाते रहे हो क्रोध का दिशा-परिवर्तन सिखाया जा शांत हो, पर भीतर से विक्षिप्त हो। इसलिए वह तुम्हारे भीतर जमा हो गया है। सकता है। उसे कोई वस्तु दे सकते हैं : जब
यदि तुम किसी सक्रिय विधि से शुरू तुम्हारे सारे संस्कार, सारी सभ्यता और तक क्रोध चला न जाए वह उस वस्तु को करो-जो विधायक हो, जीवंत हो, शिक्षा दमनकारी है। तुम इतना कुछ दबाते पटकता रह सकता है। कुछ ही मिनटों में, गतिमय हो-तो बेहतर होगा। फिर तुम रहे हो जिसे सरलता से निकाला जा सकता क्षणों में उसका क्रोध समाप्त हो जाएगा, भीतर एक स्थिरता को विकसित होता हुआ था यदि तुम्हें एक भिन्न शिक्षा मिलती, एक क्रोध का कोई संचय नहीं होगा। अनुभव करोगे। जितनी वह स्थिरता अधिक जागरूक शिक्षा मिलती, अधिक तुमने क्रोध, काम, हिंसा, लोभ-सब विकसित होगी उतना ही तुम्हारे लिए किसी जाग्रत माता-पिता मिलते। यदि मन की कुछ संचयित कर लिया है। अब यह बैठने अथवा लेटने की मुद्रा का उपयोग आंतरिक व्यवस्था के प्रति अधिक संचय ही तुम्हारे भीतर विक्षिप्तता बन गया कर पाना संभव होगा-कोई अधिक शांत सजगता होती तो संस्कृति तुम्हें बहुत कुछ है। वह तुम्हारे भीतर ही है। यदि तुम किसी ध्यान विधि संभव हो सकेगी। लेकिन तब निकाल लेने देती। जैसे, कोई बच्चा निरोधक विधि से आरंभ करते हो (जैसे तक बात भिन्न हो जाएगी, बिलकुल भिन्न क्रोधित होता है तो हम उसे कहते हैं, बैठना) तो तुम इस सब का दमन कर रहे हो जाएगी।
__क्रोध मत करो।" वह क्रोध को दबाने हो, उसे निर्मुक्त नहीं होने दे रहे हो। तो मैं जो ध्यान विधि सक्रियता से, गतिमयता लगता है। धीरे-धीरे, जो क्षणिक घटना थी रेचन से आरंभ करता हूं। पहले जितने