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ध्यान का विज्ञान
ध्यान का समय
साधकों के लिए प्रारंभिक सुझाव
जब तुम ध्यान में डूबने का प्रयोग
कर रहे हो, तो फोन को उतार कर रख दो, स्वयं को मुक्त कर लो। द्वार पर एक सूचना लटका दो कि एक घंटे तक कोई दस्तक न दे, कि तुम ध्यान कर रहे हो। और जब ध्यान कक्ष में प्रवेश करो, तो जूते उतार कर अलग रख दो, क्योंकि पवित्र भूमि पर तुम्हारे पैर पड़ रहे हैं। न उपयुक्त स्थान केवल अपने जूते ही उतार कर अलग करो, वरन वह सब भी छोड़ दो जिसमें तुम कोई ऐसा स्थान तुम्हें खोज लेना हरे-भरे हैं, वृक्ष जैसे ही रसपूर्ण हैं, वृक्ष उलझे हुए हो। होशपूर्वक, जूतों के मग चाहिए जो ध्यान में अभिवृद्धि जैसे ही उत्सवमय हैं—निश्चित ही एक साथ-साथ सब छोड़ दो। अव्यस्त होकर करे। जैसे किसी वृक्ष के नीचे बैठना भेद उनमें है। वे जागे हैं, वृक्ष सोया है। भीतर प्रवेश करो।
सहयोगी होगा। सिनेमा घर के सामने वृक्ष अचेत रूप से ताओ में है, बुद्ध सचेत चौबीस घंटों में से एक घंटा निकाला जा जाकर बैठने या रेलवे स्टेशन पर जाकर रूप से ताओ में हैं। और यह बड़ा भेद है, सकता है। तेईस घंटे अपने व्यवसाय को, प्लेटफार्म पर बैठने की अपेक्षा प्रकृति में, धरती और आकाश का भेद है। कामनाओं, विचारों, महत्वाकांक्षाओं, पर्वतों पर, वृक्षों के, नदियों के पास जाओ लेकिन यदि तुम किसी वृक्ष के निकट प्रक्षेपणों को दो। इस सब में से एक घंटा जहां ताओ अभी भी चारों ओर स्पंदित, बैठ रहो जिस पर सुंदर पक्षी गाते हों, या निकाल लो, और अंततः तुम पाओगे कि आलोड़ित, प्रवाहित हो रहा है। वृक्ष सतत कोई मोर नाचता हो; या किसी बहती नदी वह एक घंटा ही तुम्हारे जीवन का ध्यानमग्न है। वह ध्यान मौन और अचेत के पास, जहां बहते जल का नाद हो, या वास्तविक समय था; वे तेईस घंटे तो व्यर्थ है। मैं वृक्ष बनने को नहीं कह रहा हूं; तुम्हें किसी जलप्रपात के निकट उसके ही रहे। बस एक घंटा ही बचा लिया गया, बुद्ध होना है! लेकिन बुद्ध में वृक्ष जैसी महासंगीत में...। बाकी सब तो व्यर्थ गया। 10
एक बात तो है: वे भी वृक्ष जैसे ही ऐसा कोई स्थान खोज लो जहां प्रकृति