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ध्यान का विज्ञान
एक बार तुम अपनी कल्पना से कि तुम बीमार पड़ोगे-और वह रोग कि तुम कल्पना से कुछ निर्मित कर रहे लयबद्ध हो जाओ, तो शरीर भी साथ वास्तविक होगा। लेकिन वह कल्पना से हो; तंत्र का मानना है कि तुम उसे निर्मित सक्रिय हो जाता है। इसी तरह तुम कितने निर्मित हुआ है। कल्पना एक शक्ति है, नहीं कर रहे-कल्पना द्वारा तुम बस ही काम कर रहे हो जो तुम्हें पता नहीं कि एक ऊर्जा है, और मन उससे चलता है। उससे लयबद्ध हो रहे हो जो पहले से ही तुम्हारी कल्पना करवा रही है। कई बार तुम और जब मन उससे चलता है तो शरीर भी है। कल्पना द्वारा तुम जो भी निर्मित करोगे, कल्पना से ही बहुत से रोग पैदा कर लेते अनुसरण करता है। 8
वह स्थायी नहीं हो सकता। यदि वह हो। तुम कल्पना करते हो कि फलां रोग,
वास्तविकता नहीं है तो मिथ्या है, जो संक्रामक है, सब ओर फैला है। तुम तत्र परंपरा और पाश्चात्य सम्मोहन में अवास्तविक है, और तुम एक भ्रम निर्मित ग्रहणशील हो गए, अब हर संभावना है यही भेद है : सम्मोहनविद मानता है कर रहे हो।